यहां से गुजरते समय ठंडी हवा के झोंके नहीं मिल सकेंगे। इसकी वजह चौराहे पर बनने वाला वह फ्लायओवर है, जिसके कारण ग्रीन बेल्ट के 137 पेड़ों को काटने की अनुमति आईडीए (इंदौर विकास प्राधिकरण) को मिली है लेकिन सुकून इस बात का है विभाग 50 पेड़ों की जिंदगी बचाने की कवायद में लगा है। 40 विशालकाय पेड़ों को जड़ सहित उखाड़कर रोड से कुछ दूर वैज्ञानिक विधि से आईडीए की जमीन पर रोपा गया है, जिनमें अब कोपलें भी आना शुरू हो चुकी हैं।पीपल्याहाना व रिंग रोड पर ट्रैफिक दबाव को कम करने के लिए फ्लायओवर बनने जा रहा है। इसे बनाने की जिम्मेदारी आईडीए पर है। एक महीने से यहां निर्माण कार्य की शुरुआत हो चुकी है। आईडीए ने ग्रीन बेल्ट में लगे पेड़ों को काटने में समस्या जताई थी।
137 पेड़ काटने की अनुमति मिली
विभाग को विकास कार्य करने के लिए 137 पेड़ काटने की अनुमति मिल भी गई है। हालांकि, ग्रीन सिटी बनाने की पहल करने वाले शहर में धड़ल्ले से 137 पेड़ों को काटना काफी दु:खी था। यह सोचकर उनके विस्थापन की तैयारी शुरू की। आईडीए के अधिकारियों ने बताया कि ग्रीन बेल्ट के पेड़ों को 2003 में आईडीए ने ही वन विभाग की मदद से लगाया था। हजारों लीटर पानी डालकर इन्हें जिंदा रखा था। इनसे भी उसी तरह लगाव है जैसे हमें विकास कार्यों से है। भले ही हमें पेड़ काटने की अनुमति मिल चुकी है लेकिन 15 सालों से सहेजे गए पेड़ों को काटने का दिल गवारा नहीं कर रहा है। हम कोशिश करेंगे कि इनमें से आधों को बचा लें। इन्हें उखाड़कर रोड के करीब आईडीए की जमीन पर दोबारा रोपण किया जाने लगा है। फिलहाल 39 पेड़ों को विस्थापित किया जा चुका है जिनमें नई कोपलें भी आ गई हैं।
10 काटने पर लगाएंगे 100 पेड़
अधिकारियों ने दावा किया है कि वे यदि 10 पेड़ भी काटेंगे तो उनकी जगह 100 पेड़ लगाएंगे। फिलहाल 200 पौधे आईडीए परिसर व शैक्षणिक भूखंड और स्टेडियम में लगा चुके हैं। अभी जो पेड़ विस्थापित किए गए हैं इसमें विभाग की ओर से किसी तरह का खर्चा नहीं है। पेड़ उखाडऩे से लेकर उन्हें दोबारा रोपित करने का काम कंस्ट्रक्शन कंपनी को ही दिया गया है। उन्हें निर्देश दिए गए हैं कि जो पेड़ सुरक्षित निकाले जा सकते हैं उन्हें रोपण करना है। कंपनी इसमें लापरवाही न बरते। इसको लेकर कंस्ट्रक्शन कंपनी के अधिकारी और आईडीए अफसरों ने मौका-मुआयना भी किया। रोपण में लगे दो एक्सपर्ट वैज्ञानिक विधि की मदद पिछले दिनों शहर में विशालकाय पेड़ों के विस्थापन में कई कमियां थीं जिनकी वजह से वे दोबारा पनप नहीं पाए। उन्हीं खामियों को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों का सहारा लिया।