गोवा के आजादी की दिलचस्प कहानी

आज गोवा का 62वां लिबरेशन डे मनाया जा रहा है। आज ही के दिन साल 1961 में गोवा को पुर्तगाल के सैनिकों से आजादी मिली थी। भारत ने कड़े संघर्ष के बाद अंग्रेजी हुकूमत से तो आजादी पा ली थी, लेकिन इसके बाद भी 14 साल तक गोवा पुर्तगालियों का गुलाम बना रहा था।

आजादी के 14 साल बाद गोवा हुआ मुक्त

पुर्तगालियों ने 450 सालों तक गोवा पर राज किया था। देश आजाद होने के 14 साल बाद लोगों ने मन में ठान ली थी कि गोवा को भी आजादी दिलाकर रहेंगे और महज 36 घंटों में पुर्तगाली सैनिकों ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे। 19 दिसंबर, 1961 में एक हस्ताक्षर के बाद गोवा पर से पुर्तगालियों का राज खत्म हो गया और उसके बाद से हर साल 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस (Goa Liberation Day) मनाया जाता है।

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे भारतीय सैनिकों ने अपने साहस और एकजुटता के दम पर महज चंद घंटों में गोवा को आजाद करा लिया था।

1510 तक कई हिस्सों पर पुर्तगालियों का कब्जा

दरअसल, वास्को डी गामा 1498 में भारत आए और इसके बाद धीरे-धीरे कुछ ही सालों में पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा कर लिया। साल 1510 तक भारत के कई हिस्सों पर पुर्तगालियों ने अपना कब्जा कर लिया था, लेकिन फिर 19वीं शताब्दी आते-आते पुर्तगाली उपनिवेश गोवा, दमन, दादर, दीव और नागर हवेली तक सीमित हो गया।

1947 में भयावह सांप्रदायिक हिंसा और बंटवारे के बाद भारत को अंग्रेजों से तो पूरी तरह से आजादी मिल गई, लेकिन पुर्तगालियों ने गोवा और देश के किसी भी हिस्से से अपना शासन खत्म करने से इनकार कर दिया। शुरुआती दिनों ने भारत सरकार ने कोशिश की कि शांति के जरिए पुर्तगालियों से छुटकारा पा लिया जाए, लेकिन सभी कोशिशें नाकाम होती दिखने लगी।

भारत के कई राजनयिक प्रयास हुए विफल

इसके बाद भारत सरकार ने 1955 में गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया, जिससे परेशान होकर पुर्तगाली घुटने टेक दे, लेकिन यह कोशिश भी विफल हो गई, क्योंकि भारत के कई मुख्य तट पुर्तगालियों के कब्जे में ही था। जब सभी राजनयिक प्रयास नाकाम हो गए तो, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने फैसला किया कि अब गोवा को आजाद कराने के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया जाएगा।

सैन्य ताकत आजमाने में कतरा रहा था भारत

एक भाषण के दौरान जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि गोवा में पुर्तगालियों का शासन एक फुंसी की तरह है, जिसे मिटाना बहुत जरूरी है। हालांकि, जितना आसान इसे समझा जा रहा था, यह उतना आसान नहीं था। उस समय पुर्तगाल ‘नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन’ (NATO) का हिस्सा था और इसी कारण से पीएम नेहरू किसी तरह से सैन्य टकराव से कतरा रहे थे।

पुर्तगाल की चूक से मिला मौका

हालांकि, पुर्तगालियों की एक चूक भारत के लिए एक सुनहरा मौका बनकर उभर गई। दरअसल, 1961 के नवंबर में पुर्तगाली सैनिकों ने मछुआरों पर गोलियां बरसा दी, जिसमें एक मछुआरे की मौत हो गई, जिसके बाद हालात काफी बेकाबू नजर आने लगे। स्थिति को अपने पक्ष में देखकर पीएम नेहरू ने तत्कालीन रक्षा मंत्री केवी कृष्णा मेनन के साथ आपातकालीन बैठक की और एक सख्त कदम उठाते हुए कार्रवाई करने का फैसला किया।

17 दिसंबर को शुरू हुआ ऑपरेशन विजय

इस बैठक के बाद 17 दिसंबर को ऑपरेशन विजय की शुरुआत कर दी गई, जिसका लक्ष्य गोवा को आजाद कराना था। इस मिशन के तहत नौसेना, थल सेना और वायुसेना के 30 हजार सैनिकों को तैनात किया गया। हालांकि, इस पुर्तगालियों ने शुरुआत में लड़ने की ठानी और भारतीय सैनिकों के प्रवेश मार्ग यानी वास्को के पास के पुल को उड़ा दिया। आखिरकार पुर्तगालियों को अपनी हार नजर आ गई।

36 घंटे में मिली आजादी

भारतीय नौसेना की एक वेबसाइट के मुताबिक, 19 दिसंबर को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मेन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण करते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया। इसके बाद गोवा पूरी तरह से भारत में शामिल हो गया और दमन-दीव को भी आजादी मिल गई। इसके बाद 30 मई, 1987 में गोवा को एक पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया दया और गोवा आधिकारिक तौर पर भारत का 25वां राज्य बन गया।  

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