पेड़ों की लगातार कटाई व पर्यावरण प्रदूषण के बढ़ रहे स्तर से हर कोई परेशान है। इस संकट के समाधान के लिए हर कोई अपने-अपने तरीके से योगदान दे रहा है। पंजाब के जगराओं की स्वयंसेवी संस्था सिख लहर अनूठा काम कर रही है। रद्दी अखबारों, कॉपियों-किताबों और मैग्जीन आदि से पेंसिलें बनाती है। खास बात है कि इस पेंसिल को गमले में लगा देने पर पौधा भी उग जाता है। पेंसिल के ऊपरी हिस्से पर लगे कवर में रखा होता है बीज चौंक गए न आप? ऐसा कैसे होता है, इस बारे में संस्था के सदस्यों की जुबानी ही जानिए। संस्था के सदस्यों जीटीबी अस्पताल के एनस्थीसिया प्रमुख, पर्यावरण प्रेमी डॉ. परमिंदर सिंह और गुरबंस सिंह बताते हैं कि उनकी संस्था रद्दी कागज से पहले पल्प (लुगदी) तैयार करती है। फिर उसे ग्रेफाइट (पेंसिल की सींक) पर रोल कर दिया जाता है। पेंसिल को गुरु कलम नाम दिया गया है। पेंसिल के पैकेट पर पर्यावरण संरक्षण के तरीके भी बताए गए हैं। एक पैकेट की कीमत 60 रुपये है। तीनों सेनाओं के पास हथियारों की कोई कमी नहीं : निर्मला सीतारमण यह भी पढ़ें गुरु कलम है नाम, पेंसिल खत्म होने पर जमीन में रोपी जाती है डॉ.परमिंदर सिंह ने बताया कि संस्था की ओर से दो प्रकार की पेंसिलें बनाई जाती हैं। इसमें एक नार्मल पेंसिल की तरह होती है। दूसरी पेंसिल पर एक कवर लगा होता है, जिसमें किसी खास पौधे का बीज रखा होता है। जब यह पेंसिल खत्म होने वाली होती है तो उसको एक गमले में या जमीन में रोप देने पर उससे कुछ समय के बाद पौधा उगने लगता है। अब फास्ट टैग स्टिकर लगा टोल प्लाजा के वीआइपी लेन से निकलें यह भी पढ़ें उन्होंने बताया कि राज्य के 12 स्कूलों में पेंसिल बरतो, पेड़ लगाओ और पेंसिल बरतो, पेड़ बचाओ संबंधी जागरूकता सेमिनार पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से लगा चुके हैं। इसमें बच्चों को बताया जाता है कि रीसाइकल कर पेपर से तैयार पेंसिल का इस्तेमाल कर वह पर्यावरण संरक्षण में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं। -------- '' बची हुई पेंसिल को जमीन में रोपने से तैयार पौधा। यह अच्छी युक्ति है। कागज को रीसाइकल कर पेंसिल बनाने से पेड़ों की कटाई कम हो सकती है। विभाग ने सभी स्कूलों में रद्दी कागज से बनी इन पेंसिलों का इस्तेमाल करने की सिफारिश की है।

गुरु कलम’ का कमाल, लिखें भी और पौधे भी उगाएं

पेड़ों की लगातार कटाई व पर्यावरण प्रदूषण के बढ़ रहे स्तर से हर कोई परेशान है। इस संकट के समाधान के लिए हर कोई अपने-अपने तरीके से योगदान दे रहा है। पंजाब के जगराओं की स्वयंसेवी संस्था सिख लहर अनूठा काम कर रही है। रद्दी अखबारों, कॉपियों-किताबों और मैग्जीन आदि से पेंसिलें बनाती है। खास बात है कि इस पेंसिल को गमले में लगा देने पर पौधा भी उग जाता है।पेड़ों की लगातार कटाई व पर्यावरण प्रदूषण के बढ़ रहे स्तर से हर कोई परेशान है। इस संकट के समाधान के लिए हर कोई अपने-अपने तरीके से योगदान दे रहा है। पंजाब के जगराओं की स्वयंसेवी संस्था सिख लहर अनूठा काम कर रही है। रद्दी अखबारों, कॉपियों-किताबों और मैग्जीन आदि से पेंसिलें बनाती है। खास बात है कि इस पेंसिल को गमले में लगा देने पर पौधा भी उग जाता है।  पेंसिल के ऊपरी हिस्से पर लगे कवर में रखा होता है बीज   चौंक गए न आप? ऐसा कैसे होता है, इस बारे में संस्था के सदस्यों की जुबानी ही जानिए। संस्था के सदस्यों जीटीबी अस्पताल के एनस्थीसिया प्रमुख, पर्यावरण प्रेमी डॉ. परमिंदर सिंह और गुरबंस सिंह बताते हैं कि उनकी संस्था रद्दी कागज से पहले पल्प (लुगदी) तैयार करती है। फिर उसे ग्रेफाइट (पेंसिल की सींक) पर रोल कर दिया जाता है। पेंसिल को गुरु कलम नाम दिया गया है। पेंसिल के पैकेट पर पर्यावरण संरक्षण के तरीके भी बताए गए हैं। एक पैकेट की कीमत 60 रुपये है।   तीनों सेनाओं के पास हथियारों की कोई कमी नहीं : निर्मला सीतारमण यह भी पढ़ें गुरु कलम है नाम, पेंसिल खत्म होने पर जमीन में रोपी जाती है  डॉ.परमिंदर सिंह ने बताया कि संस्था की ओर से दो प्रकार की पेंसिलें बनाई जाती हैं। इसमें एक नार्मल पेंसिल की तरह होती है। दूसरी पेंसिल पर एक कवर लगा होता है, जिसमें किसी खास पौधे का बीज रखा होता है। जब यह पेंसिल खत्म होने वाली होती है तो उसको एक गमले में या जमीन में रोप देने पर उससे कुछ समय के बाद पौधा उगने लगता है।   अब फास्ट टैग स्टिकर लगा टोल प्लाजा के वीआइपी लेन से निकलें यह भी पढ़ें उन्होंने बताया कि राज्य के 12 स्कूलों में पेंसिल बरतो, पेड़ लगाओ और पेंसिल बरतो, पेड़ बचाओ संबंधी जागरूकता सेमिनार पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से लगा चुके हैं। इसमें बच्चों को बताया जाता है कि रीसाइकल कर पेपर से तैयार पेंसिल का इस्तेमाल कर वह पर्यावरण संरक्षण में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।  --------  '' बची हुई पेंसिल को जमीन में रोपने से तैयार पौधा। यह अच्छी युक्ति है। कागज को रीसाइकल कर पेंसिल बनाने से पेड़ों की कटाई कम हो सकती है। विभाग ने सभी स्कूलों में रद्दी कागज से बनी इन पेंसिलों का इस्तेमाल करने की सिफारिश की है।

पेंसिल के ऊपरी हिस्से पर लगे कवर में रखा होता है बीज 

चौंक गए न आप? ऐसा कैसे होता है, इस बारे में संस्था के सदस्यों की जुबानी ही जानिए। संस्था के सदस्यों जीटीबी अस्पताल के एनस्थीसिया प्रमुख, पर्यावरण प्रेमी डॉ. परमिंदर सिंह और गुरबंस सिंह बताते हैं कि उनकी संस्था रद्दी कागज से पहले पल्प (लुगदी) तैयार करती है। फिर उसे ग्रेफाइट (पेंसिल की सींक) पर रोल कर दिया जाता है। पेंसिल को गुरु कलम नाम दिया गया है। पेंसिल के पैकेट पर पर्यावरण संरक्षण के तरीके भी बताए गए हैं। एक पैकेट की कीमत 60 रुपये है।

गुरु कलम है नाम, पेंसिल खत्म होने पर जमीन में रोपी जाती है

डॉ.परमिंदर सिंह ने बताया कि संस्था की ओर से दो प्रकार की पेंसिलें बनाई जाती हैं। इसमें एक नार्मल पेंसिल की तरह होती है। दूसरी पेंसिल पर एक कवर लगा होता है, जिसमें किसी खास पौधे का बीज रखा होता है। जब यह पेंसिल खत्म होने वाली होती है तो उसको एक गमले में या जमीन में रोप देने पर उससे कुछ समय के बाद पौधा उगने लगता है।

उन्होंने बताया कि राज्य के 12 स्कूलों में पेंसिल बरतो, पेड़ लगाओ और पेंसिल बरतो, पेड़ बचाओ संबंधी जागरूकता सेमिनार पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से लगा चुके हैं। इसमें बच्चों को बताया जाता है कि रीसाइकल कर पेपर से तैयार पेंसिल का इस्तेमाल कर वह पर्यावरण संरक्षण में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।

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” बची हुई पेंसिल को जमीन में रोपने से तैयार पौधा। यह अच्छी युक्ति है। कागज को रीसाइकल कर पेंसिल बनाने से पेड़ों की कटाई कम हो सकती है। विभाग ने सभी स्कूलों में रद्दी कागज से बनी इन पेंसिलों का इस्तेमाल करने की सिफारिश की है।

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