जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान में सामने आया है कि गोमूत्र में 5600 तरह के तत्व होते हैं। एक अन्य अनुसंधान से पता चला है कि गाय के दूध में 5100 तत्व होते हैं। हमें तो देसी गाय को पकड़ना है। दूध तो इसका बहुत छोटा हिस्सा है।
उससे 10 गुना आय तो गाय के गोबर और गोमूत्र में है। गो-पालन करना है तो जैविक खेती करना जरूरी है। जैविक कृषि ज्ञान सम्मेलन और जैविक कृषि मेले में आए गुजरात के जैविक खेती विशेषज्ञ और गो-पालक रमेशभाई रूपारेलिया ने यह बात कही। इंदौर के शासकीय कृषि महाविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में विभिन्न विशेषज्ञों ने बात रखी।
सम्मेलन में खाद्य प्रसंस्करण विशेषज्ञ और भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के रिसोर्स पर्सन रामनाथ सूर्यवंशी ने कहा कि जैविक खाद्य पदार्थों की मांग विदेश तक है।
यह न केवल मनुष्यों को स्वस्थ रखता है, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी लाभ पहुंचाता है। सम्मेलन का आयोजन पं. शिवप्रसाद मिश्रा सगंधीय एवं जैविक फॉर्म शहडोल द्वारा किया गया है। सम्मेलन के मुख्य अतिथि और 15 साल से जैविक खेती कर रहे राजस्थान के किसान देवीलाल गुर्जर ने जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कही।
जैविक खेती विशेषज्ञ दीपक अग्रवाल ने कहा कि हम सप्ताह में दो दिन भी ऑर्गेनिक भोजन करना शुरू कर दें तो अगली पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा योगदान होगा। जैविक उत्पादों पर काम करने वाली पल्लवी व्यास, विष्णु जायसवाल ने भी संबोधित किया।
भारतीय किसान संघ के पदाधिकारी लक्ष्मीनारायण पटेल ने कहा कि प्राचीन काल में किसान जैविक खेती ही करते थे। परंपरागत और जैविक खेती को बिगाड़ने का काम सरकारों ने ही किया है।
पशुपालन के बिना जैविक खेती की कल्पना नहीं की जा सकती। ऑर्गेनिक मेले का शुभारंभ भारतीय स्टेट बैंक के उप महाप्रबंधक राजीव कुमार ने किया। सम्मेलन का संचालन जैविक खेती करने वाली महिला किसान वैशाली मालवीय और मनोज मिश्रा ने किया।
जैविक उत्पादों के मेले में जैविक आटा, दाल, मसाले से लेकर सब्जी और फल भी आए हैं। इनमें निमाड़ के खरगोन जिले के बिस्टान के किसान अविनाश दांगी अपनी जैविक सब्जियां, आटा और दाल लेकर लाए हैं।
जैविक उत्पादों का महत्व समझने वाले उनकी जैविक सब्जियां इंदौर से लेकर भोपाल, रतलाम, पुणे और गुजरात तक मंगवाते हैं। उनके खेत पर बिना केमिकल के भी एक किलो का बैंगन, 300 ग्राम का शलजम होता है।
अविनाश का कहना है कि पोषक तत्व मिले तो जैविक तरीके से पैदा की गई सब्जियों की बढ़वार भी काफी होती है। नासिक के लासलगांव से आए शरद शिंदे काले किशमिश लेकर आए हैं। वे बताते हैं कि पहले वे प्याज और टमाटर की खेती करते थे, लेकिन 10 साल से जैविक तरीके से अंगूर की खेती कर रहे हैं। इससे बनने वाली किशमिश हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए बहुत कारगर है।
गोबर हस्तकृति के अनुज राठौर गोबर से बने उत्पाद लेकर आए हैं। वे गोबर की विशेष प्रकार की शीट बनाकर इससे दीवार घड़ी, पैन स्टैंड सहित अन्य सामग्री बना रहे हैं। यह ईको फे्रंडली है। इसी प्रकार इंदौर जिले के पिवड़ाय गांव से मानव चेतना विकास केंद्र के अरुण वरलानी और महिमा गिलोय, तुलसी और पुदीना अर्क जैसे औषधीय उत्पादों के अलावा जैविक आटा, ब्रेड आदि लेकर आए हैं। मेले में भी और भी कई कंपनियां अपने जैविक उत्पाद लेकर आई हैं। यह आयोजन आठ और नौ फरवरी को भी होगा।