सभी हिन्दू शास्त्रों में लिखा है कि मंत्रों का मंत्र महामंत्र है गायत्री मंत्र। यह प्रथम इसलिए कि विश्व की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद की शुरुआत ही इस मंत्र से होती है। कहते हैं कि ब्रह्मा ने चार वेदों की रचना के पूर्व 24 अक्षरों के गायत्री मंत्र की रचना की थी। आओ जानते हैं इस मंत्र के तीन अर्थ।
यह मंत्र इस प्रकार है:- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
पहला अर्थ :- पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे।
दूसरा अर्थ :- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।तीसरा अर्थ :- ॐ : सर्वरक्षक परमात्मा, भू : प्राणों से प्यारा, भुव : दुख विनाशक, स्व : सुखस्वरूप है, तत् : उस, सवितु : उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक, वरेण्य : वरने योग्य, भर्गो : शुद्ध विज्ञान स्वरूप का, देवस्य : देव के, धीमहि : हम ध्यान करें, धियो : बुद्धि को, यो : जो, न : हमारी, प्रचोदयात् : शुभ कार्यों में प्रेरित करें।
शक्ति का राज : इस मंत्र को निरंतर जपने से मस्तिष्क का तंत्र बदल जाता है। मानसिक शक्तियां बढ़ जाती हैं और सभी तरह की नकारात्मक शक्तियां जपकर्ता से दूर हो जाती है। इस मंत्र के बल पर ही ऋषि विश्वामित्र ने एक नई सृष्टि की रचना कर दी थी। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह मंत्र कितना शक्तिशाली है। इस मंत्र में 24 अक्षर है।
प्रत्येक अक्षर के उच्चारण से एक देवता का आह्वान हो जाता है। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षरों के चौबीस देवता हैं। उनकी चौबीस चैतन्य शक्तियां हैं। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर 24 शक्ति बीज हैं। गायत्री मंत्र की उपासना करने से उन मंत्र शक्तियों का लाभ और सिद्धियां मिलती हैं।
सप्त कोटि महामंत्रा, गायत्री नायिका स्मृता।
आदि देवा ह्मुपासन्ते गायत्री वेद मातरम्।। -कूर्म पुराण
अर्थ : गायत्री सर्वोपरि सेनानायक के समान है। देवता इसी की उपासना करते हैं। यही चारों वेदों की माता है।
कामान्दुग्धे विप्रकर्षत्वलक्ष्मी, पुण्यं सुते दुष्कृतं च हिनस्ति।शुद्धां शान्तां मातरं मंगलाना, धेनुं धीरां गायत्रीमंत्रमाहु:।। -वशिष्ठअर्थ : गायत्री कामधेनु के समान मनोकामनाओं को पूर्ण करती है, दुर्भाग्य, दरिद्रता आदि कष्टों को दूर करती है, पुण्य को बढ़ाती है, पाप का नाश करती है। ऐसी परम शुद्ध शांतिदायिनी, कल्याणकारिणी महाशक्ति को ऋषि लोग गायत्री कहते हैं।
प्राचीनकाल में महर्षियों ने बड़ी-बड़ी तपस्याएं और योग-साधनाएं करके अणिमा-महिमा आदि ऋद्धि-सिद्धियां प्राप्त की थीं। इनकी चमत्कारी शक्तियों के वर्णन से इतिहास-पुराण भरे पड़े हैं। वह तपस्या थी इसलिए महर्षियों ने प्रत्येक भारतीय के लिए गायत्री की नित्य उपासना करने का निर्देश दिया था।