उम्मीद जताई जा रही है कि भारत साल 2030 तक बेहद गरीबी के मामले में टॉप-10 देशों की लिस्ट से बाहर हो जाएगा। वर्ल्ड डेटा लैब जो अडवांस्ड स्टैटिस्टिक्स मॉडल के जरिए वैश्विक गरीबी को मॉनिटर करती है, के मुताबिक हो सकता है कि अब भारत में करीब 5 करोड़ लोग ऐसे हों जो 1.90 डॉलर (करीब 134 रुपये) प्रतिदिन पर गुजारा करते हैं। थिंकटैंक ब्रूकिंग्स की रिपोर्ट कहती है, भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश बनने के साथ बेहद गरीबी को भी कम कर रहा है। हो सकता है कि दुनिया भारत की इस उपलब्धि की तरफ ध्यान न दें।
भारत ने बेहद तेजी से गरीबों की संख्या कम हुई है, यह सब प्रभावी ढंग से हुआ, लेकिन हमें इसका अंदाजा नहीं है। इससे संबंधित अंतिम डेटा 8 साल पुराना है। साल 2011 में करीब 26 करोड़ 80 लाख लोग 1.90 डॉलर (करीब 134 रुपये) प्रतिदिन पर गुजारा करते हैं, जो वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, बेहद गरीबी का स्तर है। इसे लेकर अगला डेटा इस साल जून में आने वाला है, जिसमें गरीबों की संख्या में काफी कमी देखी जा सकती है।
भारत का 2017/18 का अंतिम सर्वे घरेलू खपत को व्यापक ढंग से लेता है। इसमें अतंरराष्ट्रीय मानकों के अुनसार अन्य वस्तुओं का मापन होगा। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि तेजी से आर्थिक विकास और सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के लिए तकनीक के उपयोग ने देश में अत्यधिक गरीबी में सेंध लगाने में मदद की है।
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नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी के प्रफेसर एनआर भानूमूर्ति ने कहा, पिछले कुछ समय से गरीबी में काफी कमी आई है। 2004-2005 में बेहद गरीबी में काफी कमी आई है। उन्होंने कहा कि सरकार की कई योजनाओं की वजह से गरीबी को कम करने में मदद मिली है। इसमें सरकार की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की योजना सबसे महत्वपूर्ण है। मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों का लाभ गरीबों को सीधे उनके खाते में ट्रांसफर किया जाता है।
भानूमूर्ति ने कहा कि सांख्यकी सिस्टम को बेहतर करने की जरूरत है। सरकार की तरफ से इसे लगातार इग्नोर किया गया है।