गाजे-बाजे के साथ गणपति घर में विराजते हैं। इस दौरान वो घर के सदस्य जैसे ही हो जाते हैं। फिर विसर्जन का दिन आता है। भावुक मन से बप्पा को विदा कर देते हैं। अगले ही दिन जगह-जगह टूटी प्रतिमाएं और इधर-उधर पड़ी मूर्तियां नजर आती हैं। अधिकतर लोग दु:ख जताकर आगे बढ़ जाते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जो इन दृश्यों को बदलने का तरीका सोचने में लग जाते हैं। अलीगंज निवासी विदिशा सुखवानी भी उन्हीं में से एक हैं।
विदिशा के घर पर इस बार चॉकलेट के बने गजानन विराजे हैं। 13 इंच लंबे और पांच किलो वजन वाले ब्लैक चॉकलेट से बने बप्पा को विदिशा ने पांच दिन की मेहनत के बाद खुद तैयार किया है। विदिशा गणपति विसर्जन का भी अनोखा तरीका अपनाएंगी। चॉकलेट से बनी मूर्ति को गर्म दूध में विसर्जित किया जाएगा। इससे तैयार चॉकलेट मिल्क को प्रसाद स्वरूप झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों में बांट दिया जाएगा।
योग शिक्षिका और घर पर ही बेकरी का काम करने वालीं विदिशा बताती हैं, हम सात वर्षों से घर पर गणपति जी की स्थापना कर रहे हैं। बाजार से लाई अधिकतर मूर्तियों में प्लास्टर ऑफ पेरिस या केमिकल रंगों का प्रयोग होता है। इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम पिछले दो वर्षों से घर पर कच्ची मिट्टी से बनी मूर्ति को स्थापित करते आ रहे हैं।
इस मूर्ति को गमले में विसर्जित करते और उसमें फूल वाला पौधा लगा देते। आज भी उन पौधों में फूल आते हैं, ऐसा लगता है जैसे गणपति हमारे साथ ही हैं। इससे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी हम सहयोग कर पाते हैं। वहीं, इस बार चॉकलेट मूर्ति को स्थापित करने पर विदिशा कहती हैं, कोरोना महामारी ने हमें सादगी से रहना और बढ़-चढ़कर जरूरतमंदों की मदद का सबक भी सिखाया है। ख्याल आया, क्यों न त्योहार पर होने वाले खर्च से किसी जरूरतमंद की मदद की जाए। इसी सोच के साथ चॉकलेट गणपति बनाने का भी आइडिया आया।