विश्व कप मैचों समेत क्रिकेट के चार अंतरराष्ट्रीय मैचों का गवाह रहा पटना का मोइनुल हक स्टेडियम कोरोना काल में और बदहाल हो गया है। लॉकडाउन के कारण स्टेडियम पिछले छह माह से बंद है। 1996 में जिंबाब्वे और केन्या के बीच हुए विश्व कप क्रिकेट मैच के दौरान जिस आउटफील्ड की तारीफ सुनील गावस्कर, माइकल होल्डिंग और नवाब पटौदी जैसे सितारों ने की थी, वहां दो फीट ऊंची घास उग आई है। ऐसा लगता है कि जैसे किसी खेत का नजारा हो। दर्शकों के लिए बनी गैलरी भी जर्जर हो चुकी है। दोनों पवेलियन का हाल बेहाल है। इलेक्ट्रॉनिक और मैनुअल स्कोर बोर्ड का सिर्फ ढांचा बचा हुआ है।
51 साल से ड्रेनेज सिस्टम में नहीं हुआ बदलाव
1969 में बने स्टेडियम के ड्रेनेज सिस्टम में कोई सुधार नहीं हुआ है। इससे पानी निकासी की समस्या बनी रहती है। वर्ष 2007 में मैदान को ऊंचा करने और ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करने के नाम पर हुए काम ने ड्रेनेज को और नुकसान पहुंचाया है। हर बारिश के बाद मैदान के चारों ओर बने नाले में भरे पानी को दिन-रात मोटर चलाकर निकाला जाता है, जो बाहरी परिसर में जमा होता है। स्टेडियम में ऑस्ट्रेलियन घास लगाने की बात हुई थी, लेकिन मैदान में मोथा (एक तरह की घास) नजर आती है। इस घास से विकेट और आउटफील्ड को नुकसान पहुंच रहा है।
चार दिन की चांदनी और अंधेरी रात
पिछले दो साल से हो रहे रणजी और अन्य मैच के दौरान स्टेडियम, गैलरी, पवेलियन का रंगरोगन किया गया, जो चार दिन की चांदनी और फिर अंधेरी रात साबित हुआ। पवेलियन समेत टूट रही गैलरी की दीवार को दुरुस्त करने के लिए न राज्य खेल प्राधिकरण और न ही भवन निर्माण विभाग कोई पहल कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक स्कोर बोर्ड के सारे उपकरण, मैदान में लगे अंतरराष्ट्रीय बाउंड्री रोप कोलकाता जा चुके हैं। अब केवल ढांचा ही बचा हुआ है। रणजी के दौरान भी मैनुअल स्कोर बोर्ड काम नहीं करता है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में रणजी मैचों की मेजबानी से भी बिहार को हाथ धोना पड़ सकता है।
मोइनुल हक स्टेडियम के मैनेजर अरुण कुमार सिन्हा ने कहा है, “कोरोना वायरस महामारी के कारण हुए लॉकडाउन और जरूरत से ज्यादा हुई बारिश से मोइनुल हक स्टेडियम का यह हाल हुआ है। इन दोनों समस्या से निजात पाने के बाद स्टेडियम को दुरुस्त करने का काम शुरू किया जाएगा।”