राफेल सौदे को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सौदे को लेकर फ्रेंच वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ के आरोप के बाद अब फ्रांसीसी कंपनी दासौ की तरफ से सफाई दी गई है। दासौ का कहना है कि उन्होंने स्वतंत्र रूप से राफेल साझेदारी के लिए भारतीय पार्टनर रिलायंस डिफेंस का चयन किया था। मीडियापार्ट के आरोपों का विस्तृत में जवाब देते हुए कंपनी ने आगे कहा कि फ्रांस और भारत के बीच सितंबर 2016 में सरकार के स्तर पर समझौता हुआ था। इसमें दासौ ने भारत सरकार को 36 राफेल विमान बेचे थे।
‘मर्जी से रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुना’
फ्रांसीसी कंपनी ने आगे कहा है कि उसने भारतीय नियमों (डिफेंस प्रॉक्यूरमेंट प्रोसीजर) और ऐसे सौदों की परंपरा के अनुसार किसी भारतीय कंपनी को ऑफसेट पार्टनर चुनने का वादा किया था। इसके लिए कंपनी ने ज्वाइंट-वेंचर बनाने का फैसला किया। कंपनी ने साफ तौर पर कहा कि उसने अपनी मर्जी से रिलायंस ग्रुप को ऑफसेट पार्टनर चुना था।
कई दूसरी कंपनियों के साथ भी हुए समझौते
बता दें कि फरवरी 2017 में ज्वाइंट वेंचर दासौ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) बनाया गया था। कंपनी ने अपने बयान में आगे कहा कि केंद्रीय कार्य परिषद को 11 मई, 2017 को डीआरएएल के निर्माण के बारे में सूचित किया गया था। कंपनी ने बताया कि BTSL, DEFSYS, काइनेटिक, महिंद्रा, मियानी, सैमटेल जैसी कंपनियों के साथ दूसरे समझौते भी किए गए थे। सैकड़ों संभावित साझेदारों के साथ अभी बातचीत चल रही है।
नागपुर में रखी गई DRAL प्लांट की आधारशिला
27 अक्टूबर, 2017 को नागपुर में DRAL प्लांट की आधारशिला रखी गई थी। ये प्लांट फाल्कन 2000 बिजनेस जेट के पार्ट्स बनाएगा, जिसे 2018 के अंत तक बना लिया जाएगा। अगले चरण में यहां राफेल एयरक्राफ्ट के पार्ट्स बनाए जाएंगे। कंपनी ने बताया कि भारतीय प्रबंधकों की एक टीम को प्रोडक्शन प्रोसेस समझाने के लिए फ्रांस में छह महीने की ट्रेनिंग दी गई है।
क्या है मीडियापार्ट के आरोप?
फ्रेंच वेबसाइट मीडियापार्ट ने दावा किया है कि दासौ ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस से गठजोड़ दिखाकर राफेल सौदा हासिल किया था। वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जब दासौ के प्रतिनिधि ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का दौरा किया, तो वहां केवल एक वेयर हाउस था। इसके अलावा कोई भी सुविधा नहीं थी। साथ ही रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि उनके (दासौ) सामने रिलायंस को पार्टनर चुनने की शर्त रखी गई थी, यानी उन्हें कोई दूसरा विकल्प नहीं दिया गया। हालांकि दासौ ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि उन्होंने अपनी मर्जी से रिलायंस ग्रुप को ऑफसेट पार्टनर चुना था।