त्योहारी सीजन शुरू हो चुका है और इसी के साथ गहनों (आभूषण) की खरीदारी भी की जाने लगी है। कई लोग करवाचौथ के लिए आभूषण खरीद रहे हैं, तो कई धनतेरस के लिए प्लानिंग कर रहे हैं। हर कोई यही चाहता है कि वह जो भी आभूषण खरीदें, वह शुद्ध हो। मगर, इसके लिए सिर्फ आभूषण विक्रेता की मीठी-मीठी बातों में न आएं, बल्कि अपने स्तर पर भी शुद्धता की पहचान कर लें।
कोशिश करें कि आभूषण भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) के हॉलमार्क वाले ही प्रतिष्ठानों से खरीदें। हालांकि, इसके लिए हॉलमार्क की भी भली-भांति जांच कर लें।
हॉलमार्क की पहचान के लिए आभूषण पर बने चार निशानों को देखना जरूरी है। हॉलमार्क की पहचान 10-एक्स मैग्नीफाइंग ग्लास से संभव है और यह ग्लास आभूषण विक्रेता के पास अनिवार्य रूप से होना जरूरी है।
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस), देहरादून के कार्यालय प्रमुख व वरिष्ठ वैज्ञानिक अनिलेश एम डेविड ने यह भी कहा कि वर्तमान में कई ज्वेलर्स लाइसेंस न होने के बाद भी हॉलमार्क की ज्वेलरी बेच रहे हैं। ऐसे में सिर्फ हॉलमार्क होना ही सोने आदि की शुद्धता की गारंटी नहीं है। हो सकता है कि हॉलमार्क ही नकली हो।
जब भी हॉलमार्क वाले आभूषण खरीदने जाएं तो उस पर बीआइएस चिन्ह, सोने की शुद्धता, परीक्षण एवं हॉलमार्किंग सेंटर की पहचान के साथ आभूषण विक्रेता का चिन्ह जरूर देखें। इसके अलावा आभूषण विक्रेता का लाइसेंस भी जरूर जांचें, जिसे बीआइएस कार्यालय जारी करता है।
हॉलमार्क में यह निशान जरूरी
– पहला, त्रिकोण के आकार का बीआइएस का चिन्ह (लोगो)
– दूसरा, कैरेट के अनुसार 22के916, 18के750, 14के585
– तीसरा, आभूषणों पर हॉलमार्क टैग करने वाले सेंटर का चिन्ह।
– चौथा, स्वयं आभूषण विक्रेता का पहचान चिन्ह (लोगो)
बिल में हॉलमार्क चार्ज नहीं तो विक्रेता लाइसेंस होना संभव नहीं
हॉलमार्क के लाइसेंसधारी ज्वेलर को सोने के प्रति आभूषण पर 35 व चांदी के आभूषण पर 25 रुपये प्राप्त करने का हक दिया गया है। यह राशि बिल पर दर्ज करनी जरूरी है। लिहाजा, जब भी ग्राहक सोना-चांदी खरीदें तो इस राशि का उल्लेख जरूर कराएं। यदि बिना हॉलमार्क लाइसेंस के कोई इस तरह की ज्वेलरी बेचता है और राशि का उल्लेख करता है तो उस पर कार्रवाई तय हो जाती है।
ग्राहक करा सकते हैं आभूषण की जांच
यदि किसी भी ग्राहक को खरीदे गए आभूषण की शुद्धता पर शक हो तो वह बीआइएस कार्यालय या हॉलमार्क की टैगिंग वाली एजेंसी से उसकी जांच करा सकता है।
देहरादून जिले में महज 127 लाइसेंसधारी
ज्वेलर्स एसोसिएशन के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेशभर में करीब 20 हजार आभूषण विक्रेता हैं और इसके बाद भी हॉलमार्क के लाइसेंस वाले विक्रेताओं की संख्या महज 239 पर सिमटी है। इसके अलावा राजधानी दून समेत पूरे जिले में हॉलमार्क के लाइसेंस वाले आभूषण विक्रेताओं की संख्या महज 127 है। दूसरी तरफ प्रदेश में जो 239 लाइसेंसधारी हैं, वह भी महज सात जिलों तक सीमित हैं। शेष छह जिलों में किसी के पास भी लाइसेंस नहीं है। ऐसे में ग्राहकों को शुद्ध सोना-चांदी बेचने की गारंटी नहीं दी जा सकती।
भारतीय मानक ब्यूरो रिकॉर्ड के अनुसार, देहरादून में 127 आभूषण विक्रेताओं के पास ही हॉलमार्क का लाइसेंस है, जबकि इनकी संख्या 2000 से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है। जिन छह और जिलों में हॉलमार्क वाले आभूषण विक्रेता हैं, वहां भी यह संख्या वास्तविकता के मुकाबले बेहद कम है।
वहीं, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, चंपावत, पिथौरागढ़ में एक भी कारोबारी हॉलमार्क लाइसेंसधारी नहीं हैं। भारतीय मानक ब्यूरो के कार्यालय प्रमुख एएम डेविड के मुताबिक ऐसा भी नहीं है कि लाइसेंस लेने की प्रक्रिया मुश्किल है। फिर भी लाइसेंस न लेना आभूषण विक्रेताओं की मंशा पर सवाल खड़े करता है। यहां तक व्यवस्था की गई है कि यदि आभूषण विक्रेता या संगठन चाहें तो उनके बाजार में स्टॉल लगाकर भी लाइसेंस जारी किया जा सकता है।
लाइसेंस की यह है प्रक्रिया
आभूषण विक्रेता का पता, आइडी प्रूफ व फोटो देकर लाइसेंस प्राप्त कर सकते हैं। लाइसेंस के लिए 2000 रुपये का पंजीकरण शुल्क व टैगिंग के लिए तीन साल का शुल्क साढ़े सात हजार रुपये जमा कराना होता है।
हॉलमार्क लाइसेंस लेने की जल्द होगी अनिवार्यता
भारतीय मानक ब्यूरो के उत्तर क्षेत्र के उप महानिदेशक एनके कन्सारा ने कहा कि सोने-चांदी के आभूषण विक्रेताओं के लिए हॉलमार्क की अनिवार्यता की जा रही है। केंद्र सरकार के स्तर पर कवायद की जा रही है, ताकि सभी ज्वेलर्स अनिवार्य रूप में लाइसेंस प्राप्त कर सकें। इस व्यवस्था के बाद कोई भी आभूषण विक्रेता बिना लाइसेंस प्रतिष्ठान नहीं चला सकेगा।