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खतरे में राजस्थान की अशोक गलहोत सरकार विधायकों ने दिखाया बगावती रुख

राजस्थान की अशोक गलहोत सरकार के खिलाफ पिछले साल सचिन पायलट समर्थक कांग्रेसी विधायकों ने बगावती रुख अख्तियार कर चुनौती खड़ी कर दी थी. एक साल के बाद फिर से गहलोत सरकार के खिलाफ पार्टी विधायकों की नाराजगी बढ़ती जा रही है. पिछले एक महीने में कांग्रेस के आठ विधायकों ने अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ असंतोष व्यक्त करते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.

राजस्थान में ताजा मामला पूर्व मंत्री व विधायक भरत सिंह का आया है, जिन्होंने अपने ही सरकार के खाद्य मंत्री प्रमोद जैन भाया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. भरत सिंह ने कोटा के पुलिस आईजी को पत्र लिखकर कहा है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता नरेश मीणा के खिलाफ हिस्ट्रीशीट खोला जा रहा है जबकि वह राजनैतिक कार्यकर्ता है. यह सब कराने वाले खान मंत्री प्रमोद जैन भाया के बारे में पूरा राजस्थान जानता है कि वह कैसे व्यक्ति हैं. इससे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखे चिट्ठी में भरत सिंह ने खान मंत्री प्रमोद जैन भाया को खान माफिया तक बता दिया था.

बता दें कि भरत सिंह से पहले अशोक गलहोत सरकार के खिलाफ बागी रुख अख्तियार करने वाले विधायकों में शामिल कांग्रेस के तीन विधानसभा सदस्यों सदन में अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अल्पसंख्यक समुदाय के विधायकों के साथ भेदभाव करने और उनकी आवाज दबाने के प्रयास का आरोप लगा चुके हैं. इसमें पूर्व मंत्री रमेश मीणा, विधायक वेद प्रकाश सोलंकी और मुरारी लाल मीणा शामिल थे. इसके अलावा पूर्व मंत्री विश्वेन्द्र सिंह और पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी भी राजस्थान सरकार के कामकाज पर अपना संतोष जता चुके हैं.

रमेश मीणा ने आरोप लगाया था कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदाय के विधायकों की न तो सरकार में सुनवाई हो रही है न ही संगठन में और वे इस बात को पार्टी आलाकमान तक ले जाएंगे. बागी रुख अख्तियार करने वाले पूर्व मंत्री रमेश मीणा, विधायक मुरारी लाल मीणा और वेद प्रकाश सोलंकी हैं. इन तीनों विधायकों ने पिछले साल मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ बागी तेवर अपनाने वाले तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का साथ दिया था.

गौरतलब है कि विधानसभा में 50 विधायकों को बिना माइक वाली सीट दिए जाने का मुद्दा गर्माया था. इससे पहले इस मुद्दे पर विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी तथा कांग्रेस विधायक रमेश मीणा के बीच बहस हुई थी. रमेश मीणा ने विधानसभा के बाहर कहा था कि मैं अपनी समस्याओं के बारे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मिलूंगा. मिलने के लिए समय मांगा है, लेकिन अगर वहां भी हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होता है तो मैं इस्तीफा देने से भी पीछे नहीं हटूंगा.

दौसा से कांग्रेस विधायक मुरारी लाल मीणा ने कहा था कि शुरुआत से ही भेदभाव किया जा रहा है. इसके लिए मुख्यमंत्री से लेकर पार्टी स्तर तक आवाज उठाई गई है. मीणा ने विधानसभा के बाहर संवाददाताओं से कहा था कि मेरे क्षेत्र में विकास कार्य हुए हैं जिन्हें मैं अस्वीकार नहीं कर सकता, लेकिन अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में सरकार में कई लोगों के काम नहीं हो रहे हैं. उन्होंने कहा था कि पार्टी के नेता एससी/ एसटी और अल्पसंख्यकों को कांग्रेस की रीढ़ मानते हैं, लेकिन विधानसभा, सरकार और पार्टी स्तर पर ही इस रीढ़ को कमजोर किया जा रहा है.

चाकसू विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने आरोप लगाया था कि विधानसभा में कुछ चुनिंदा लोगों को ही बोलने की अनुमति है. सोलंकी ने कहा था कि एक तरफ आप मानते हैं कि अजा-जजा और अल्पसंख्यक कांग्रेस की रीढ़ हैं और दूसरी तरफ आप उन्हीं के विधायकों को कमजोर करते हैं. दोनों चीजें साथ-साथ तो नहीं हो सकती.उन्होंने कहा था कि कोरोना प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए जिन 50 विधायकों को विधानसभा में बिना माइक की सीटें दी गई हैं उनमें से ज्यादातर दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक समुदाय से हैं. इस तरह से कांग्रेस के आठ विधायक बागी रुख अपना रखा है.

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