जैसे ही पुराने नोटोँ के जमा का आंकडा दस लाख करोड अर्थात बाजार मेँ उतरे नोटोँ का दो तिहाई से ऊपर पहुंचने लगा काफी सारे लोगोँ को उस बादशाह की कहानी याद आने लगी...जिसकी घोषित हसरत दूध का तालाब बनवाने की थी और जिस तालाब मेँ उसके समेत हर आदमी ने यह सोचकर एक लोटा पानी ही डाला कि जब बाकी सब दूध डालेंगे तब उसका पानी कौन पहचान पाएगा। नोटबन्दी अभी अपनी आधी अवधि तक भी नहीँ पहुंची है और जिस रफ्तार से पुराने नोट बैंकोँ मेँ आ रहे हैँ उससे कालेधन का अनुमान और पैसा न लौटने से सरकार या रिजर्व बैन्क के लाभ के अरमान धरे रह जाएंगे। नोट वापसी का आंकडा ग्यारह लाख करोड के पार कर गया है और 500 तथा हजार के नोटोँ की शक्ल मेँ कुल 15।43 लाख करोड रुपए के बाजार मेँ होने का अनुमान सरकार बताती रही है। पहले यह अन्दाजा लगाया जा रहा था कि करीब बीस फीसदी अर्थात तील लाख करोड स एज्यादा की रकम वापस न होगी। जो पैसा नहीँ लौटता वह बैंक का मुनाफा हो जाता है और सरकार उतने नए नोट पा सकती है। पर वह सपना टूटता लग रहा है।अब यह अनुमान गलत था या हमारी बैंकिंग व्यवस्था और सरकारी इंतजाम की चूक थी कि सारी कवायद बेकार होती दिख रही है यह हिसाब तो तीस दिसम्बर के बाद लगेगा पर भाजपा और मोदी सरकार का पूरा मीडिया मैनेजमेंट फेल हो गया है और हर अखबार तथा चैनल अब लोगोँ की तकलीफोँ और अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान की खबरोँ से भरे पडे है। जिस योजना को पहले दिन कोई भी गलत और नुकसानदेह बताने की हिम्मत नहीँ कर रहा था उसे अब डिफेंड करने मेँ सरकार को पसीने छूट रहे हैँ। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ बोलने से बच रहे हैँ तो बाहर बोलते हुए उनकी आंख भर आई। मोदी सरकार के लोग और भाजपा के सांसद भी अब आराम से निजी बातचीत मेँ इससे हो रहे नुकसान (उन्हे अपने राजनैतिक नुकसान की चिंता है) की चर्चा करते हैँ।भाजपा और संघ के कुछ लोगोँ को पहले संकेत दिये गए थे या नहीँ, उसी चलते भाजपा ने कई जगह जमीन खरीदी या पुराने नोट जमा करा दिये, जैसी चर्चाएँ भी आई हैँ और नोट बदलने एक लाइन मेँ भाडे के लोग लगाने, बैंकोँ के माध्यम से गडबड करने के भी पर यह सब काम कहीँ भी इस स्तर पर सम्भव नहीँ था कि सारा काला धन सोख लेता और सरकार को इस अभियान पर हुए खर्च भी निकालने के लाले पड जाएँ यह अन्देशा बन जाए तो जाहिर है फैसले मेँ गम्भीर चूक हुई है और किसी और से नहीँ सर्वेसर्वा से ही हुई है। आय कर विभाग या दूसरे सरकारी विभागोँ की चूकोँ और कमजोरियोँ या सीमाओँ को भी मोदी जी न जानते होंगे यह नहीँ माना जा सकता पर वे भी लाखोँ करोद का काला-सफेद होने देंगे यह मानना भी मुश्किल है। आज भले लोगोँ मेँ इ-ट्रांजेक्शन की समस्या हो पर बैंकोँ और उन सभी ठिकानोँ का कामकाज तो लगभग पूरी तरह इलेक्ट्रानिक हो गया है जिन्हे पुराने नोत लेने की इजाजत है। कोई दस-बीस कर्मचारी पुराने नोट के बदले नए की गदबड कर रहे होंगे पर इतने से सारा अनुमान पिट जाए तो यह गम्भीर मामला है।सरकारी पक्ष और मोदी के भक्तजन भी पहले नोटबन्दी को कालाधन, आतंकवाद की फंडिंग, भ्रष्टाचार और नकली नोट की समस्या एक साथ खत्म करने की रामवाण दवा बता रहे थे। बीच मेँ काला-सफेद की एक और योजना लाकर सरकार ने खुद ही उस चर्चा को रोक दिया। पर इस तरह भी ज्यादा कालाधन सामने आनेकी खबरेँ नहीँ आई हैँ। आजकल वह चर्चा बदल गई है और अब सारा जादू इ-ट्रांजेक्शन मेँ बताया जाने लगा है। इ-ट्रांजेक्शन के कारोबारी तो निहाल हो रहे हैँ, लाल हो रहे हैँ, प्रधानमंत्री की तस्वीर लगा-लगा कर विज्ञापन दे रहे हैँ पर मोदी भक्त भी सारी बातचीत ‘साफ-सुथरे’ इ-ट्रांजेक्शन पर ही ले जाना चाह्ते हैँ मानो इस योजना का मुख्य मकसद लोगोँ को इलेक्ट्रानिक ट्रांजेक्शन पर शिफ्ट कराना हो। और तो और सरकार का हर मंत्रालय अपने लोगोँ को इसका प्रचार करने को कह रहा है, सन्सद के कैंटीन मेँ लगी स्वैप मशीन को दुल्हन की तरह पेश किया जा रहा है और छत्तीसगढ सरकार तो छोटे व्यापारियोँ के लिए इस तरह की मशीनोँ को अनिवार्य बना दिया है। सम्भव है कुछ और राज्य सरकारेँ यही करेँ। इस इतने बडे फैसले की यह परिणति सोचने की खुराक देती है पर यह मामला जिद और स्वामीभक्ति दिखाने का नहीँ है। अगर अनुमान और कार्यप्रणाली मेँ गलती हुई है तो जल्दी उसे स्वीकार करके उन्हे दूर करने की जरूरत है।