क्या आप जानते है “किस बदलाव की आहट है ‘चमार रैप”?

जालंधर पंजाब के सबसे अधिक दलित आबादी वाले जिलों में से एक है और यहां बड़ी तादाद में मौजूद चमड़े का काम करने वाली जाति को – जिन्हें दलितों में गिना जाता है; अब अपनी जात बताने में शर्म नहीं। जाति से जुड़े संगठनों ने अपने बैनर्स पर सबसे ऊपर लिखना शुरू कर दिया है ‘गर्व से अपनी जाति के बारे में कहो।’
 

क्या आप जानते है "किस बदलाव की आहट है 'चमार रैप"?धीरे-धीरे एक पूरी पीढ़ी इस बात पर गर्व महसूस करने लगी और जो नाम एक अपमान के तौर पर उनकी तरफ उछाला जाता था, उसकी बाजी उन्होंने पलट दी। हालात ये हैं कि अब बात होती है ‘चमार रैप’ की। और, दलित परिवार में जन्मी 18 साल की गुरकंवल भारती – जो यूट्यूब और फेसबुक पर गिन्नी माही के नाम से अधिक मशहूर हैं, आज चमार रैप क्वीन मानी जाती है।

हुंदे असले तो बध डेंजर चमार (हथियारों से अधिक खतरनाक हैं चमार), गिन्नी का ऐसा वीडियो है जिसे यूट्यूब के अलग-अलग चैनल्स पर लाखों की तादाद में हिट्स मिले हैं। रविदास समुदाय के परिवार से संबंधित गिन्नी का कहना है कि उसे अगर एक दमदार आवाज मिली है तो वह अपनी आवाज से ही लोगों को सामाजिक पिछड़े पन से बाहर निकालने के लिए प्रयास करती रहेगी।

‘हर गीत में देना चाहती हूं एक संदेश’

एक हजार से अधिक स्टेज शो और गायन कार्यक्रमों में हिस्सा ले चुकीं गिन्नी ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि 11 साल की उम्र से गायन शुरू कर आज वह 22 से अधिक गीत रिकॉर्ड करवा चुकी है और उनके वीडियो भी बने हैं। वह अपने हर गीत में एक संदेश देना चाहती है और अब तक अपने लक्ष्य में सफल भी रही है।

गिन्नी ने बताया कि स्कूल और कॉलेज में भी उसे काफी सहयोग मिलता है। स्कूल और कॉलेज में टीचर्स उसे गायन में प्रोत्साहित करते हैं। सहपाठियों से भी प्रोत्साहन मिलता है। डेंजर चमार का आइडिया भी उसे एक स्टूडेंट से ही मिला था जो कि आज उसका सबसे हिट म्यूजिक वीडियो बन चुका है। 

आसपास और गायन कार्यक्रमों में गायन करने के बाद अब गिन्नी को पंजाबी फिल्मों से भी ऑफर आने लगे हैं और जल्द ही वह पंजाबी फिल्मों में प्ले बैक सिंगिंग भी करती दिखेंगी। अभी तक अपने स्तर पर ही संगीत सीखने वाली गिन्नी अब संगीत की शिक्षा भी लेना चाहती है ताकि गायिकी में और सुधार ला सके। गिन्नी के पिता राकेश माही का कहना है कि गिन्नी को मिली सफलता ने उनकी समुदाय के अन्य बच्चों को भी प्रेरित किया है और वे भी अब गायन में आना चाहते हैं।

उनके आसपास के परिवारों में गिन्नी की सफलता के चर्चे हैं और बच्चे भी गिन्नी से लगातार उनके नए गीतों के बारे में पूछते रहते हैं। समुदाय के कार्यक्रमों में भी गिन्नी को विशेष सम्मान मिल रहा है और गिन्नी को भी छोटी उम्र से ही ये सब अच्छा लगता है। हालांकि वह अभी भी अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता देती है।

गीत के सहारे बदलाव ला रहीं हैं गिन्‍नी

सिर्फ 18 साल की उम्र में गिन्नी राजनीतिक और सामाजिक तौर पर भी काफी जागरूक है और वह अच्छी तरह से जानती है कि बाबासाहब भीमराव अंबेडकर ने संविधान लिखा और संविधान में दलितों को आरक्षण देकर उनका सामाजिक उत्थान किया।

वह अपने गीतों में भी अपने आप को बाबा साहब की बेटी ही करार देती है। प्लस टू में 77 प्रतिशत अंक लेकर अब गिन्नी कॉलेज में पढ़ाई कर रही है और वह पंजाब और पूरे देश में दलितों के उत्थान के लिए काम करने के साथ ही बॉलीवुड में प्ले बैक सिंगर भी बनना चाहती है।

गर्व से कहो हम चमार हैं, पुत्त चमारा दें, की सोच को पूरे समाज तक पहुंचाने के लिए इस समुदाय के गायकों की एक पूरी पीढ़ी सक्रिय है जो कि चर्चे चमारा दें, डेंजर चमार आदि गीतों से अपने समाज को अपने पर गर्व करने के लिए प्रेरित कर रही है। 

पंजाब में जिस तरह से ये जाति अपने आप को अपनी पहचान और गुरु रविदास और बाबा साहब पर गर्व करने के लिए प्रेरित कर रही है, उतना कोई नहीं कर पा रहा। और, ये एक नया तरह का बदलाव है जो कि अब रफ्तार पकड़ रही है।

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