अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के माइक्रोटिक डिसीज के प्रमुख डॉक्टर का कहना है कि कुछ कॉमेडी यूनिट में कैंडिडा ऑरिसा की मौजूदगी मिली है। हैरानी की बात यह है कि कोरोना से बुरी तरह प्रभावित अमेरिका में इस साल कैंडिडा ऑरिसा के अब तक 1272 मामले सामने आए हैं। जो वर्ष 2018 में मिले मामलों की तुलना में 400 फीसदी दोगुना है, जो एक नए खतरे का संकेत हैं।
कोरोना वायरस के साथ सुपरबग कैंडिडा ऑरिस भी खतरनाक हो सकता है। सुपरबग खतरनाक पैथोजन है, जिस पर दवा भी बेअसर हो जाती है। अस्पतालों से इसके फैलने की संभावना अधिक है क्योंकि अस्पतालों में मरीजों की भीड़-भाड़ बढ़ने से साफ-सफाई पर असर हुआ है।
लखनऊ के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के बैक्टीरियोलॉजिस्ट डॉक्टर अनुपम दास का कहना है कि सुपरबग कैंडिडा ऑरिस की अस्पताल की हर चीज पर खासतौर से अस्पताल के बेडशीट, बेड की रेलिंग, दरवाजे और मेडिकल उपकरणों पर मौजूदगी की संभावना अधिक है। इसी की मदद से वह मनुष्य की त्वचा तक पहुंचता है।
नई दिल्ली स्थित वल्लभ पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के मेडिकल मायकोलॉजी की प्रोफेसर अनुराधा चौधरी की टीम ने दिल्ली के आईसीयू में भर्ती मरीजों पर अध्ययन में पाया कि 15 में से 10 मरीजों के रक्त में कैंडिडा फंगल इंफेक्शन के साथ ड्रग रेसिस्टेंट का पता चला है। इनमें से 6 मरीजों की मौत हो गई। यह संक्रमण अस्पताल से ही होने की आशंका है।
कोरोना की तरह कैंडिडा की रोकथाम की योजना बनानी होगी। मरीजों में सुपरबग की पहचान के लिए त्वचा के स्वैब, रक्त और ईस्ट के डीएनए की पहचान के लिए यूरिन जांच जरूरी है। इसकी पुष्टि होने पर तीन एंटीफंगल दवाओं पर विचार होता है जिससे संक्रमण खत्म हो सकता है। अगर इसका पता नहीं चल रहा है तो मौत का कारण जान पाना मुश्किल है। ड्रग रेसिस्टेंट होने पर इलाज कैसे होगा ये पता नहीं है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, कोरोना महामारी में अस्पतालों में भीषण भीड़ और अव्यवस्था की स्थिति रही है। स्पष्ट है कि दुनिया भर में इसके मामले अधिक होंगे लेकिन अच्छे से निगरानी न होने के कारण शायद हालात काबू में लग रहे हैं। संभव है कि बिना लक्ष्मण के फैलने वाले इस सुपरबग के कारण ही दुनियाभर में कोरोना से मौतों का आंकड़ा अधिक है क्योंकि मरीजों को एक साथ दो तरह के संक्रमण से जूझना पड़ रहा है.