कोरोना संकट: विमानन कंपनी GO AIR के मैनेजमेंट में आधे दर्जन बड़े अधिकारियों ने काम छोड़ा

प्राइवेट सेक्टर की विमानन कंपनी गोएयर के मैनेजमेंट में उथल पुथल का दौर देखने को मिल रहा है. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक बीते कुछ सप्ताह में करीब आधे दर्जन बड़े अधिकारियों ने काम छोड़ दिया है.

दरअसल, इस महीने की शुरुआत में गोएयर ने कर्मचारियों को तीन विकल्प दिये थे- स्वैच्छिक इस्तीफा, पद से हटाया जाना और अनिश्चित काल के लिए बिना वेतन का अवकाश. सूत्रों ने बताया कि इसके बाद आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ अधिकारियों ने नौकरी छोड़ दी, जबकि कुछ अन्य ने विभिन्न विकल्पों पर विचार किया.

वरिष्ठ अधिकारियों के पद छोड़ने के बारे में टिप्पणियों के लिए संपर्क करने पर गोएयर के एक प्रवक्ता ने इस्तीफे की न तो पुष्टि की और न ही इससे इनकार किया. प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि कंपनी बाजार की मौजूदा स्थिति का लगातार आकलन कर रही है और मौजूदा उड़ान संचालन के साथ अपनी लागत को व्यवस्थित करेगी.

ये योजना के हिसाब से लोगों को अवकाश पर भेजा गया है, ताकि परिचालन के मौजूदा स्तर के हिसाब से कर्मचारियों की संख्या व्यवस्थित कर नकद खर्च को कम किया जा सके.

गोएयर को अपने कर्मचारियों को वेतन दे पाने में मुश्किलों का सामना कर रही है और उसने बड़ी संख्या में लोगों को बिना वेतन के अवकाश पर भेजा हुआ है. सूत्रों के मुताबिक वाडिया समूह की गोएयर में लगभग 6,700 कर्मचारी हैं और लगभग 4,000-4,500 बिना वेतन के अवकाश पर हैं.

कोरोना वायरस महामारी के कारण एयरलाइन सेक्टर प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझ रहा है. ऐसे में कई विमानन कंपनियां लागत में कटौती के उपायों के रूप में लोगों को काम से हटा रही हैं. कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये उड़ान सेवाओं के निलंबन से गोएयर भी बुरी तरह प्रभावित हुई है.

कंपनी ने मार्च में अपने अधिकांश कर्मचारियों के वेतन में कटौती की घोषणा के अलावा अप्रैल में 60-70 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए बिना वेतन के अवकाश योजना की पेशकश की थी. सूत्रों ने कहा कि शेष 30 प्रतिशत कार्यबल का वेतन भुगतान भी नियमित नहीं है.

बता दें कि हाल ही में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने गोएयर को ‘कैश एंड कैरी’ आधार पर परिचालन करने की अनुमति देने का निर्णय किया है. इसका मतलब ये हुआ कि कंपनी को प्राधिकरण के हवाईअड्डों से उड़ानें संचालित करने के लिए प्रतिदिन भुगतान करना होगा.

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