दुनिया भर में कोरोना वायरस से पसरे सन्नाटे के बीच जल्द ही तेल की कीमतों में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है. विश्लेषकों का कहना है कि तेल की वैश्विक मांग में भारी गिरावट के बावजूद सऊदी अरब अपना तेल उत्पादन बढ़ाने की तैयारी कर रहा है. दुनिया के कई देशों में तेल के भंडारण की भी जगह नहीं बची है. ऐसे में, तेल की आपूर्ति बढ़ती जाएगी जबकि मांग घटती जाएगी और इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों पर पड़ेगा.
चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच जनवरी महीने में तमाम रिफानरियों के बंद होने के बाद से दुनिया भर के तेल भंडार औसतन तीन-चौथाई भर चुके हैं. दुनिया भर में कोरोना महामारी के बीच तेल उद्योग को आने वाले सप्ताह और महीनों में तेल को स्टोर करके रखना पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि तमाम देशों में तेल समेत प्राकृतिक संसाधनों की खपत कम हो गई है. भारत एशिया में चीन और जापान के बाद तेल की खपत करने वाला तीसरा बड़ा देश है, लेकिन यहां भी लॉकडाउन होने की वजह से तेल की खपत में भारी गिरावट आई है.
एनर्जी कंसल्टेंसी रिस्टैड एनर्जी के विश्लेषकों के मुताबिक, कनाडा में घरेलू उत्पादन की वजह से कुछ ही दिन में तेल भंडार भर सकते हैं. दुनिया के बाकी देशों को भी कुछ ही महीनों में ऐसी चुनौती से जूझना पड़ेगा. तेल भंडारण में समस्या होने से बाजार में तेल की आपूर्ति और बढ़ जाएगी.
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विश्लेषकों का मानना है कि पश्चिमी कनाडा में तेल के प्रचुर भंडार वाले इलाकों को महीने के अंत तक अपना उत्पादन 400,000 बैरल प्रति दिन तक घटाना पड़ सकता है. रिस्टैड के एक विश्लेषक थॉमस लिलीज कहते है कि अभी के जो हालात हैं, उनमें रेल से होने वाले कच्चे तेल के निर्यात में भी भारी गिरावट आएगी. इसके अलावा, खनन से जुड़ीं कई परियोजनाएं भी ठप पड़ जाएंगी.
दुनिया भर के तेल उद्योग समुद्र किनारे तेल टैंकरों में अतिरिक्त कच्चे तेल को जमा कर सकते हैं. लेकिन इससे आर्थिक लाभ तब मिलेगा जब तेल की कीमतों में और गिरावट आएगी.
पिछले हफ्ते, तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई, जिसके बाद तेल 25 डॉलर प्रति बैरल के भाव बिकने लगा. साल की शुरुआत में यही तेल 65 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा की कीमत में बिक रहा था. पिछले कुछ सप्ताह से तेल की कीमत लगातार 30 डॉलर प्रति बैरल से नीचे बनी हुई है. रिस्टैड ने इंडस्ट्री को चेतावनी दी है कि तेल की कीमतें इस साल 10 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं.
विश्लेषकों के मुताबिक, सऊदी अरब के जहाजों की बुकिंग के बाद कम लागत में तेल भंडारण और मुश्किल हो सकता है. पिछले तीन सप्ताह में शिपिंग सर्विसेज की कीमतें आसमान छूने लगी हैं. तेल भंडारण में मुश्किल होने से कीमतें और गिरेंगी. दुनिया भर में अगले महीने मांग की तुलना में तेल की आपूर्ति और तेजी से बढ़ने की उम्मीद है. ओपेक (तेल निर्यात करने वाले देशों का संगठन) और रूस के बीच तेल उत्पादन स्थिर रखने का समझौता खत्म होने जा रहा है. ये समझौता खत्म होने के बाद ओपेक में दबदबा रखने वाला सऊदी अरब बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तेल उत्पादन के मामले में रूस से होड़ शुरू कर देगा.
तेल की कीमतों को लेकर युद्ध छिड़ने की वजह से दुनिया भर का तेल उत्पादन प्रति दिन 25 लाख बैरल तक बढ़ सकता है. इससे प्रति दिन तेल की मांग से करीब 60 लाख बैरल ज्यादा तेल की आपूर्ति हो जाएगी. रिस्टैड के विश्लेषकों के अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर के भंडारण सुविधा केंद्रों में करीब 7.2 अरब बैरल कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पाद संग्रहित हैं. इसमें से समुद्री तेल टैंकरों में ही 1.3 अरब से 1.4 अरब बैरल तक क्रूड ऑयल जमा है.
सैद्धांतिक तौर पर तो दुनिया भर के तेल भंडारणों को भरने में नौ महीने का वक्त लगेगा लेकिन कई फैसेलिटीज में तमाम दिक्कतों की वजह से इसमें और भी कम वक्त लगेगा. रिस्टैड एनर्जी के विश्लेषक पाओला रोड्रिगेज मासियु के मुताबिक, स्टोरेज भरने की मौजूदा दर को देखते हुए तेल की कीमतों का वही हश्र नजर आ रहा है जो 1998 में हुआ था. उस वक्त ब्रेंट (कच्चा तेल) की कीमतों में सबसे बड़ी गिरावट हुई थीं और कीमतें 10 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंच गई थीं.