कोरोना वायरस के चलते रायसेन किले पर भारतीय पुरारत्व सर्वेक्षण द्वारा इमारतों व शिव मंदिर परिसर में जाने वाले मुख्य द्वारों पर ताला डाल दिया गया है। किले के नीचे से आने वाले वाहनों के रास्ते को बंद कर दिया गया है। फिलहाल किले को बंद करने की यह व्यवस्था 31 मार्च तक के लिए की गई है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब किले में पर्यटकों की आवाजाही इतने दिनों तक बंद रहेगी रहेगी। उल्लेखनीय है कि सप्ताहांत में बड़ी संख्या में दूर-दूर से लोग समूह में रायसेन किला देखने आते है। यहां स्थित शिव मंदिर के दरवाजे साल में केवल एक बार महाशिवरात्रि पर ही खुलते हैं। किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में है।
करीब 900 साल पुराना है रायसेन किला
रायसेन किला इतिहास के पन्नों पर संघर्ष की एक अनूठी मिसाल है। करीब 11 वीं शताब्दी के आस-पास गौंड राजाओं द्वारा बनाये गए इस किले पर 14 बार मुगल शासकों ने हमले किए। सैकड़ों तोपों और गोलों की मार झेलने के बाद भी यह किला सीना तानकर खड़ा है। देश के अजेय दुर्गों (जिसे कोई जीत न सका हो) में शामिल है। भोपाल से 45 किमी दूर जिला मुख्यालय रायसेन में स्थित किला 400 मीटर से अधिक ऊंची पहाड़ी पर लगभग दस वर्ग किमी में फैला है। एएसआई के अनुसार रायसेन किला करीब नौ साल पुराना है।
14 बार हमले हुए पर कोई जीत नहीं पाया
रायसेन दुर्ग पर हुए हमले…
– 1223 ई. में अल्तमश
– 1250 ई. में सुल्तान बलवन
– 1283 ई. में जलाल उद्दीन खिलजी
– 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी
– 1315 ई. में मलिक काफूर
– 1322 ई. में सुल्तान मोहम्मद शाह तुगलक
– 1511 ई. में साहिब खान
– 1532 ई. में हुमायू बादशाह
– 1543 ई. में शेरशाह सूरी
– 1554 ई. में सुल्तान बाजबहादुर
– 1561 ई. में मुगल सम्राट अकबर
– 1682 ई. में औरंगजेब
– 1754 ई. में फैज मोहम्मद
रायसेन किले से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं
– 17 जनवरी 1532 ई. में बहादुर शाह ने किले का घेराव किया।
– 6 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ दुर्ग पर ही जौहर किया।
– 10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का बलिदान।
– जून 1543 ई. में रानी रत्नावली सहित कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान।
– जून 1543 ई. में शेरशाह सूरी द्वारा किए गए विश्वासघाती हमले में राजा पूरनमल और सैनिकों का बलिदान।