कोरोना ने मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर भी डाला प्रभाव, मुश्किलों को ऐसे दें मात

पिछले 10 वर्ष के आंकड़ों पर गौर करें तो यह साफ पता चलता है कि मानसिक रूप से बीमार लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वहीं, कोरोना महामारी की दस्तक ने इन आंकड़ों में और इजाफा किया है। अब तक अलग-अलग स्तर पर किए गए अध्ययनों में यह जरूर स्पष्ट हो रहा है कि मौजूदा हालात भविष्य के बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं। इससे इतर यह भी समझने की जरूरत है कि आज की भागदौड़ और चुनौतियों से भरी जीवनशैली के बीच हमें मानसिक स्वास्थ्य को अपनी प्राथमिकता में लाना होगा।

हर आयु वर्ग को यह समझाने की जरूरत है कि धैर्य के साथ बगैर घबराए परिस्थितियों का सामना करें। खुद को हर हाल में मानसिक तौर पर भी स्वस्थ बनाए रखें और निराशा पर विजय पाना सीखें। जानें क्‍या कहते है रांची के केंद्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. डी राम।

कोरोना महामारी ने दुनिया को कई सबक भी दिए। महामारी के कारण पैदा हुए भय ने हमारे मन-मस्तिष्क को सीधे तौर पर प्रभावित किया। लॉकडाउन के दौरान कुछ दिनों तक लोग अपने कमरे में बंद होकर सबकुछ ठीक होने का इंतजार करते रहे। बाजार, रोजगार, समाज सब पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। कंटेनमेंट जोन, आइसोलेशन सेंटर, कोविड वॉर्ड, होम आइसोलेशन जैसे शब्दों ने मानसिक चेतना को अस्थिर कर दिया। इन सबका प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा।

बन सकता है नया संकट : बीते दिनों जब सब रुका था और लोग अपने घरों को लौटने की जद्दोजहद में थे तब कुछ दिनों तक परिवार के भूले-बिसरे सदस्यों के बीच सोशल मीडिया की मदद से आपसी नजदीकियां बढ़ीं लेकिन कुछ दिनों बाद हमेशा घर के अंदर मौजूदगी ने रिश्तों में टकराव की स्थिति भी पैदा कर दी। इन दिनों घरेलू अपराध में दर्ज की गई वृद्धि इसका प्रमाण रही। इस महामारी के चलते कई लोगों ने अपनी नौकरी खो दी। वर्षों से जिस परिवेश में रह रहे थे, उसे छोड़ना पड़ा। बीमारी में स्वजनों व प्रियजनों को भी खो दिया। इन परिस्थितियों ने लोगों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला है। हार्वर्ड विवि में हुए एक अध्ययन में आशंका व्यक्त की गई है कि मानसिक स्वास्थ्य नए संकट का रूप ले सकता है। लॉकडाउन से अनलॉक के बीच शहर दर शहर बढ़ी आत्महत्या की घटनाओं ने भी हमें इसकी झलक दिखाई है।

हर पांचवां व्यक्ति प्रभावित : इंडियन सायकियाट्री सोसाइटी (आईपीएस) की ओर से किए गए एक हालिया सर्वे के अनुसार, लॉकडाउन लागू होने के बाद से मानसिक बीमारियों के मामले 20 फीसद बढ़े हैं। औसतन हर पांचवां भारतीय इनसे प्रभावित हुआ है। चेतावनी दी गई है कि देश में हाल के दिनों में अलग-अलग कारणों से मानसिक संकट का खतरा पैदा हो रहा है। इनमें नौकरियां खत्म होने, आर्थिक तंगी बढ़ने, सामाजिक व्यवहार में बदलाव तथा अनहोनी की आशंका के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है। एक अध्ययन में यह भी दावा किया गया है कि जिन लोगों की मानसिक स्थिति अगले 10 वर्ष बाद बिगड़ने वाली थी। वह इस अवधि में ही बिगड़ गई है। मानसिक अवसाद से बाहर आ चुके कई लोग एक बार फिर पुरानी स्थिति में लौट गए हैं।

हर वर्ग हुआ प्रभावित: कोविड 19 के संक्रमण के दौर में अलग-अलग आयुवर्ग पर किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया है कि हर आयुवर्ग और लिंग पर इसका असर हुआ है। बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन हुए हैं। वृद्धजन बीमारी को लेकर सबसे ज्यादा डरे हुए हैं। हल्की सर्दी-खांसी व बुखार में लोग खुद को कोविड-19 का मरीज मान रहे हैं। युवा वर्ग अपने कॅरियर को लेकर डरा हुआ है। वहीं नौकरीपेशा लोग अपने और परिवार के भविष्य को लेकर परेशान हैं। बच्चे घर में तनाव और हिंसा के गवाह बन रहे हैं। पहले मनोरंजन और अब ऑनलाइन पढ़ाई के चलते उनका अधिकांश वक्त मोबाइल पर गुजर रहा है। मनोरंजन के साधन के रूप में बस इंटरनेट व टीवी का विकल्प मौजूद है। यह सब बातें हमें इस ओर गंभीर होने की तरफ इशारा कर रही हैं।

 

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