कठिन समय में किस तरह हम खुद को बचा सकते हैं, इस संबंध में वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में हमें कई अच्छी बातें पढ़ने को मिलती है। उन्हें हम अपने आचरण में अपनाकर करोनाकाल के इस दौरा से खुद को सुरक्षित कर सकते हैं, क्योंकि इस दौर में व्यक्ति सेहत, अर्थ और रिश्तों के संकट से जूझ रहा है। ऐसे में महात्मा विदुर की यह 5 बातें जरूर याद रखें।
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कोरोनाकाल : विपरीत परिस्थिति में ही होती है योग्यता की परीक्षा, जानिए महाभारत का ज्ञान1. संसार के छह सुख प्रमुख है- 1.धन प्राप्ति, 2.हमेशा स्वस्थ रहना, 3.वश में रहने वाले पुत्र, 4.प्रिय भार्या, 5.प्रिय बोलने वाली भार्या और 6.मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या (ज्ञान वा योग्यता)- अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है।…इसके लिए संयमित रहकर प्रेमपूर्ण तरीके से हमें जो भी प्रयास करना पड़े करना चाहिए।
2. काम, क्रोध और लोभ यह तीन प्रकार के नरक यानी दुखों की ओर जाने के मार्ग है। यह तीनों आत्मा का नाश करने वाले हैं, इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए। काम, क्रोध और लोभ ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं, अत: इन तीनों को त्याग देना चाहिए।…यह ऐसे बुरे आचरण है जो हमें रिश्तों, व्यापार और नौकरी में नुकसान देते हैं।
कोरोनाकाल में आचार्य चाणक्य की ये 3 बातें, सभी संकट से बचाए3. ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित (दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन छह प्रकार के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं।…आज के दौरन में दूसरों पर आश्रित रहना सबसे बड़ा दुख है। इसीलिए ईर्ष्या करने के बजाया स्वस्थ सकारात्मक प्रेरणा लेकर प्रतियोगिता करें। असंतुष्ट रहने के बजाय संतोष किससे प्राप्त होगा उसके लिए प्रयास करें। क्रोधित रहने और शंकालु बने रहने से हमारे सभी तरह के संबंध टूट जाते हैं। अत: प्रेम और विश्वास करना सीखें। किस के प्रति आसक्ति नहीं रखें। प्रत्येक व्यक्ति को उसके तरीके से स्वतंत्र रहने दें।
कोरोनाकाल : मात्र प्राणायाम से इम्युनिटी सिस्टम को कैसे बढ़ाएं4. मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।….इस बात को अच्छे से समझना चाहिए कि आपको आपके किए का भुगतान को करना ही होगा। कर्म का सिद्धांत बड़ा क्रूर होता है। आप किसी भी प्रकार का पाप करने बच लेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं। आपके पाप का दूसरे आनंद उठाएं और आप सजा पाएं यह समझना जरूरी है।5. भरतश्रेष्ठ! पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु- मनुष्य को इन पांच की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए। यदि आप इनका सम्मान व सेवा नहीं करते हैं तो निश्चित ही आपके जीवन में सिर्फ पछताना ही लिखा होगा। आत्मा अर्थात खुद की सेवा करने का अर्थ है शरीर और मन को स्वस्थ रखना।