कोरोना के नये वैरिएंट पर वैक्सीन का असर जानने में लगे वैज्ञानिक, जानें- कोवैक्सीन और कोविशील्ड कितनी हैं प्रभावी

एक तरफ जहां वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ाने की कवायद तेज है, वहीं कोरोना के बढ़ते संक्रमण और इसके नए वैरिएंट पर वैक्सीन के प्रभावकारी होने की जांच भी शुरू हो गई है। आइसीएमआर और सीएसआइआर के वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश में हैं कि भारत में इस्तेमाल की जा रही कोवैक्सीन और कोविशील्ड कोरोना के नए वैरिएंट के प्रति कितना कारगर हैं।

ब्रिटिश, दक्षिण अफ्रीकी और डबल म्यूटेशन वैरिएंट के लिए जिम्‍मेदार

भारत में कोरोना की दूसरी लहर के लिए ब्रिटिश, दक्षिण अफ्रीकी और डबल म्यूटेशन वैरिएंट तीनों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। कोरोना के नए वैरिएंट पर मौजूदा वैक्सीन के कम प्रभावकारी होने की आशंकाओं के बारे में पूछे जाने पर सीएसआइआर के मातहत इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने कहा कि कोरोना के नए वैरिएंट पर कोविशील्ड और कोवैक्सीन के प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है। उसकी रिपोर्ट आने के बाद ही इस संबंध में साफ तौर पर कुछ कहा जा सकता है।

दुनिया में पहली बार आठ महीने से कम समय में इतनी सारी वैक्सीन हुई तैयार

वहीं आइसीएमआर के वैज्ञानिक कोरोना के नए वैरिएंट और वैक्सीन की एफीकेसी को बड़ा मुद्दा नहीं मानते हैं। आइसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि दुनिया में पहली बार आठ महीने से कम समय में इतनी सारी वैक्सीन तैयार करने में मदद मिली है। उनके अनुसार एक बार किसी भी प्लेटफार्म पर वैक्सीन तैयार हो जाने और उसकी सुरक्षा और कारगरता साबित होने के बाद उसे आसानी से नए वैरिएंट के अनुरूप तैयार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वायरस में म्यूटेशन एक सामान्य प्रक्रिया है और इससे निपटने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। उन्होंने इनफ्लूएंजा वायरस का उदाहरण दिया जो हर साल पूरी तरह बदल जाता है और हर साल उसके लिए नई वैक्सीन बनानी पड़ती है। लेकिन समान प्लेटफार्म पर नई वैक्सीन तैयार करने में कोई मुश्किल नहीं आती है।

कोविशील्ड पूरी तरह कारगर पाई गई

ध्यान देने की बात है कि भारत में अभी तक कोविशील्ड की एफीकेसी को लेकर सिर्फ ब्रिटिश वैरिएंट पर स्टडी की गई है। जिसमें कोविशील्ड पूरी तरह कारगर पाई गई थी। लेकिन दक्षिण अफ्रीकी और ब्राजीली वैरिएंट पर वैक्सीन की एफीकेसी को लेकर भारत में अभी तक अध्ययन नहीं किया गया। वहीं कोवैक्सीन को लेकर किसी भी वैरिएंट पर कारगरता का अध्ययन नहीं हुआ है। जबकि डबल म्यूटैंट वैरिएंट पर किसी वैक्सीन की कारगरता का अध्ययन नहीं किया गया है। कई देशों में हुए अध्ययन में दक्षिण अफ्रीकी और ब्राजील वैरिएंट पर कोविशील्ड को कम कारगर पाया गया था। इस कारण दक्षिण अफ्रीका ने सीरम इंस्टीट्यूट को कोविशील्ड के पांच लाख डोज वापस कर दिए थे।

 

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