कोरोना वायरस के इलाज में कई तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन भी शामिल था। कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में इसका खूब इस्तेमाल किया गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार इस दवा को महामारी के ‘गेम-चेंजर’ के रूप में बताया था, लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना में इस दवा के इस्तेमाल से बचने की सलाह दी है। संगठन की विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का उपयोग कोविड-19 को रोकने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि पहले से संक्रमित रोगियों पर इसका कोई सार्थक प्रभाव नहीं दिख रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की विशेषज्ञ समिति ने मंगलवार को जारी एक बयान में कहा कि कोरोना के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा का कोई असर नहीं हो रहा है। इससे न तो अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में कमी आ रही है और न ही इससे मौतें ही रुक रही हैं, बल्कि इसके उलट इस दवा के इस्तेमाल से प्रतिकूल प्रभाव का खतरा जरूर बढ़ जाता है।
छह हजार से अधिक लोगों पर किए गए कई नैदानिक परीक्षणों में इसके प्रभावों का पता चला। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस दवा का इस्तेमाल अब शोध के लिए नहीं किया जाएगा। इसकी जगह पर अन्य दवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
पिछले साल भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन समेत चार दवाओं को कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज में बहुत कम प्रभावी बताया था। दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ने सॉलिडैरिटी ट्रॉयल के दौरान कुल चार दवाओं का परीक्षण किया था, जिसके नतीजों में पाया गया था कि ये दवाएं मरीजों की जान बचाने और संक्रमण के दिनों को कम करने में भी कारगर साबित नहीं हुई हैं।
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का उपयोग मलेरिया के उपचार और रोकथाम के लिए किया जाता है। मलेरिया के अलावा इस दवा का इस्तेमाल आर्थराइटिस के इलाज में भी किया जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा इस दवा का उत्पादन भारत में ही होता है और यहां हर साल लाखों लोग मलेरिया से प्रभावित भी होते हैं।