कृषि उत्पादों के निर्यात के मामले में कोरोना काल भारत के लिए नई संभावनाओं वाला साबित हुआ है। इस दौरान गैर बासमती चावल समेत अनाज का निर्यात नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तीनों तिमाही में चावल, गेहूं और मोटे अनाज के निर्यात में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अप्रैल से दिसबंर-2020 के दौरान कुल 49,832 करोड़ रुपये का अनाज निर्यात किया गया। पिछले साल की इसी अवधि में कुल 32,591 करोड़ रुपये का अनाज निर्यात हुआ था। इस तरह निर्यात में 52.81 फीसद की वृद्धि हुई और यह डेढ़ गुना हो गया।

कोरोना काल के दौरान भारत में कृषि क्षेत्र में बंपर पैदावार हुई और अंतरराष्ट्रीय बाजार में घरेलू कृषि उत्पादों की जबर्दस्त मांग निकली। भारतीय निर्यातकों ने आगे बढ़कर इसका लाभ उठाया। इसे और गति देने के लिए कई पहल भी की गई है। चावल निर्यात को बढ़ाने के लिए गहरे समुद्र के आंध्र प्रदेश के काकीनाडा बंदरगाह को शुक्रवार से खोल दिया गया है। एपीडा के प्रयासों से इस बंदरगाह से निर्यात के लिए चावल की खेप को भेजने की अनुमति मिल गई है। इस बंदरगाह पर अतिरिक्त लदान का बंदोबस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने सौ करोड़ रुपये की वित्तीय मदद मुहैया कराई है। इससे एक समय में 10 जहाजों पर एक साथ लदान की जा सकेगी।
चावल निर्यात करने वाले प्रमुख देश थाइलैंड में सूखा पड़ने की वजह से चावल का उत्पादन बहुत कम हो गया था, जिससे उसके बाजारों में भारत को जगह बनाने का मौका मिला है। कोरोना काल के दौरान ज्यादातर देशों की नजर भारतीय खाद्यान्न पर रही। कोविड-19 के संक्रमण के चलते वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखला बिगड़ गई थी, लेकिन भारत सरकार इस दौरान स्वास्थ्य सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखकर चावल निर्यात को बढ़ाने की पूरी कोशिश करती रही, जिसका लाभ निर्यातकों मिला है। गैर बासमती चावल का निर्यात पहली तीन तिमाही में पिछले साल के 10,365 करोड़ रुपये के मुकाबले 22,856 करोड़ रुपये का रहा। रुपये के हिसाब से इसमें 122.61 फीसद की वृद्धि हुई है।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। वैश्विक मांग के अनुरूप घरेलू उत्पादन पर भी जोर दिया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय ¨जस बाजार में भारतीय उपज की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है।
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