आज महाशिवरात्रि के अवसर पर हम बात करेंगे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम के बारे में। जहां केदारनाथ धाम की भव्यता को बढ़ाने के लिए मंदिर परिसर से तीन सौ मीटर आगे भगवान शिव के प्रिय प्रतीक ॐ की 60 क्विंटल की आकृति स्थापित की गई है। केदारनाथ में आई आपदा के बाद केदारनाथ का पूरा मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है।
आज फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर देशभर में महाशिवरात्रि का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करने की परंपरा है। सुबह से ही भगवान शिव के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखी जा रही है।
आज महाशिवरात्रि के अवसर पर हम बात करेंगे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम के बारे में। जहां केदारनाथ धाम की भव्यता को बढ़ाने के लिए मंदिर परिसर से तीन सौ मीटर आगे भगवान शिव के प्रिय प्रतीक ‘ॐ’ की 60 क्विंटल की आकृति स्थापित की गई है।
पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत केदारनाथ को भव्य रूप से सुरक्षित और सुंदर बनाया जा रहा है। केदारनाथ मंदिर से लगभग तीन सौ मीटर पहले संगम के ऊपर गोल प्लाजा पर भगवान शिव के प्रिय प्रतीक ‘ॐ’ आकृति स्थापित की गई है। गुजराती जागरण की टीम ने इस प्रोजेक्ट से जुड़े क्यूरेटर सचिन कालुस्कर से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने ‘ॐ’ की आकृति स्थापित करने के आइडिया जेनरेशन से लेकर इंस्टालेशन तक की जानकारी बताई। जिसका शब्दश: वर्णन हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
पीएम मोदी ने दिया आइडिया
इस आकृति पर बात करते हुए सचिन कालूस्कर ने कहा कि केदारनाथ में आई आपदा के बाद केदारनाथ का पूरा मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा था। फिर वहां क्या हो सकता है? किस तरह के बदलाव किए जा सकते हैं, इसका मास्टर प्लान अहमदाबाद की कंपनी आईएनआई डिजाइन स्टूडियो पास है। वे संपूर्ण केदारनाथ का मास्टर प्लान बना रहे हैं।
इसके भीतर डेवलपमेंट होने पर इसे ओम चौक (पहले डमरू चौक) कहा जा रहा था। यह संगम के बाद आता है। जब इसे डेवलप करने की बात आई तो वहां क्या रखा जाए और कैसा स्ट्रकचर खड़ा किया जाए, इसके लिए कई तरह के डिजाइन दिए गए। प्रधानमंत्री ने कहा कि ओम लगाना चाहिए। इसलिए पीएम के सुझाव के बाद ओम लगाने का विचार आया।
प्लानिंग में 8 महीने लगे
उन्होंने हमें इसलिए चुना क्योंकि हमने पहले देहरादून हवाई अड्डे पर कलाकृति बनाई थी। तो उत्तराखंड में काम करने का अनुभव था। तो हमे मौका मिला। यह दिखने में आसान लगता है, लेकिन इसे बनाना इतना आसान नहीं था। इस जगह की भौगोलिक स्थिति के कारण केदारनाथ 6 महीने बंद रहता है और छह महीने यह स्थान बहुत अधिक बर्फ से ढका रहता है। इसलिए ऐसा स्ट्रकचर बनाने के लिए कहा गया, जो मौसम की मार झेल सके।
साल 2022 के जनवरी-फरवरी महीने में ओम को रखने का विचार आया था। हमने इसे अप्रैल 2023 में स्थापित किया। इसकी योजना बनाने में हमें 8 महीने लगे। क्योंकि, इसकी सामग्री की अलग-अलग जगहों पर टेस्टिंग की गई। नागपुर में वीएनआईटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दिलीप पेशवा द्वारा टेस्टिंग की गई थी।
जर्मनी से आयात किया गया था मटेरियल
ओम को बनाने में डेढ़ से दो महीने का समय लगा। सबसे महत्वपूर्ण बात थी योजना बनाना कि किस मटेरियल का उपयोग करना है। सामग्री डिस्पेंस होगा या नहीं। अगर पीतल बनाना है तो पीतल का कंपोजीशन कितना होना चाहिए। वहां बर्फ होता है तो कितना ऑक्सीकरण होगा, कितना स्लो होगा, इन सबका हमने अध्ययन किया, हमने उस हिसाब से मटेरियल का चयन किया। यह पीतल का बना है, परंतु इसकी संरचना पीतल की है। यह बहुत जरूरी है। इसमें निकेल, जिंक और तांबा कितना होना चाहिए? जब इसे अंतिम रूप दिया गया, तो हमने इसे जर्मनी से आयात किया। फिर यह ओम बना।
सिर पर पार्ट्स रखकर केदारनाथ पहुंचे
यह ओम कुल 6000 किलोग्राम से बना है। ओम के अंदर स्टेनलेस स्टील की प्लेटिंग है यानी स्टेनलेस स्टील स्ट्रकचर और उपर पर पूर्ण पीतल प्लेटिंग है। इसे हमने कुल 17 भागों में बनाया है. हमारा स्टूडियो वडोदरा में है. वहां से सोनप्रयाग पहुंचाया गया। वहां से केदारनाथ तक कोई मोटर योग्य सड़क नहीं है। सोनप्रयाग से पैदल चलना पड़ता है। हम 200 लोगों की मदद से केदारनाथ पहुंचे। ये लोग सारे पार्ट्स सिर पर लेकर पहुंचे। अलग-अलग हिस्सों का वजन 150 किलोग्राम से लेकर 400 किलोग्राम तक था।
ओम को बनाने में 22-24 लोगों ने काम किया था
इन पार्ट्स को वहां तक पहोंचना बहुत चुनौतीपूर्ण था। क्योंकि बारिश हो रही थी, बर्फबारी हो रही थी। उस समय केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हुई थी. चारों तरफ बर्फ थी। उस वक्त हम सभी पार्ट्स लेकर पहुंचे थे. जब मंदिर के कपाट खुले तो हमने स्थापना की। तीन कलाकारों द्वारा डिज़ाइन किया गया। करीब 10-12 जितने वर्क्सने काम किया। अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग समय पर काम किया।
कुछ लोगों ने बफ़िंग का काम किया जबकि 3 लोगों ने पॉलिशिंग का काम किया. इसे बनाने वाले तीन मुख्य कलाकार थे। इनमें काम करने वाले, वेल्डर (3 लोग मुंबई से आए) थे। कुल 22-24 लोगों ने काम किया. वहां तक ले जाने में 200 लोगों थे।
केदारनाथ के जोन 5 में आता है यह स्ट्रकचर
यह जो स्ट्रकचर है। वो केदारनाथ जोन 5 में आता है इसलिए कई बातों का ध्यान रखा गया है। इसकी नींव एवं स्ट्रकचर का अनुमोदन एवं भारांक आईआईटी रूड़की एवं IIT BHU द्वारा किया गया। यह स्ट्रकचर इंजीनियरिंग और कला का चमत्कार है। क्योंकि अगर आप इसकी तस्वीर देखेंगे तो इसका भार एक बिंदु पर है। पीछे से गोल भाग एक ही बिंदु पर है, इसे गुरुत्वाकर्षण-विरोधी संरचना भी कहा जा सकता है।