केंद्र सरकार की रस्साकशी के बीच 450 स्कूली बच्चों की जान खतरे में

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की जमीन की उलझन के बीच एक सरकारी स्कूल के बच्चों की जिंदगी अधर में लटक गई है. दिल्ली के एक 99 साल पुराने स्कूल की जर्जर इमारत हर रोज बच्चों की जिंदगी को खतरे में डाल रही है. इसके बावजूद ना तो दिल्ली सरकार और ना ही केंद्र सरकार फैसला ले पा रही है कि बिल्डिंग को गिराकर दोबारा बनाया जाए या फिर बच्चों के स्कूल को किसी दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाए.

दोनों सरकार जब फैसला नहीं ले पाईं तो यह मामला कोर्ट पहुंचा. फिलहाल, दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में नोटिस के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से डिफेंस मिनिस्ट्री कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा है कि इस इमारत में पढ़ाई के लिए आने वाले बच्चों की सुरक्षा खतरे में है लिहाजा इसे हटाया जाए या फिर दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए. आर्मी की जमीन पर बने इस 99 साल पुराने स्कूल में ना तो एनओसी ही मिली है और ना ही दिल्ली सरकार द्वारा इसको कहीं शिफ्ट किया गया है.

1975 में स्कूल की इमारत दिल्ली प्रशासन के अधीन आ गई थी और उसके बाद से यह स्कूल दिल्ली सरकार के आर्थिक मदद के साथ चल रहा है.दिल्ली कैंट इलाके में राजपूताना राइफल्स हीरोज मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल की इमारत 1919 में बनकर तैयार हुई थी. केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार की संयुक्त जांच के बाद यह भी साफ हो गया कि ये इमारत जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो चुकी है और फिलहाल रहने लायक नहीं है.

इमारत तो जर्जर है ही और हर रोज गिरने का खौफ बच्चों को भी झेलना पड़ता है साथ ही इस स्कूल को चलाने के लिए बच्चों को मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं है. ना यहां पर बच्चों के लिए टॉयलेट्स हैं और ना ही पीने का पानी है. इतना ही नहीं क्लासरूम भी बेहद गंदे हैं. ना यहां पर कोई कंप्यूटर लैब है और ना ही बाउंड्री वॉल.

कुल मिलाकर दोनों सरकारें मानती हैं कि स्कूल की इमारत भयानक जर्जर हालत में है, लेकिन दिल्ली सरकार केंद्र सरकार से नई जगह जमीन चाहती है या फिर इस इमारत को तोड़कर बनने वाले नए स्कूल का खर्चा. जबकि केंद्र का कहना है किए स्कूल दिल्ली सरकार के अधीन है यह इमारत को तोड़कर दोबारा बनवाना या फिर स्कूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने का जिम्मा दिल्ली सरकार के हिस्से आता है. दो सरकारों की इस लड़ाई में फिलहाल 450 बच्चे रोज अपनी जान पर खेलकर इस स्कूल में पढ़ने आते हैं.

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