केंद्र ने राज्यों से टैक्स संबंधी सभी अधिकार जबरन छीन लिए हैं: दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया

जीएसटी काउंसिल की बैठक में शामिल होने के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने राष्ट्रीय राजधानी के साथ सौतेले व्यवहार का आरोप लगाया है. मनीष सिसोदिया ने कहा कि जीएसटी लागू करने में केंद्र सरकार पूरी तरह से विफल रही है.

केंद्र ने राज्यों से टैक्स संबंधी अधिकार छीन लिए हैं. उन्होंने कहा कि जीएसटी लागू करते वक्त भरोसा दिया गया था कि राज्यों के नुकसान की भरपाई की जाएगी, लेकिन अब केंद्र सरकार अपनी वैधानिक जिम्मेदारी से भाग रही है.

मनीष सिसोदिया ने आजादी के बाद राज्यों के साथ केंद्र का सबसे बड़ा धोखा बताते हुए मुआवजा की व्यवस्था करने की मांग की. उन्होंने कहा कि दिल्ली को कर्ज लेने का अधिकार नहीं है. केंद्र खुद आरबीआइ से कर्ज लेकर राज्यों का मुआवजा दे.

-मनीष सिसोदिया ने कहा कि वर्ष 2016-17 में जीएसटी लागू करते समय सबसे बड़ा टैक्स रिफाॅर्म बताते हुए जनता को महंगाई कम होने का सपना दिखाया गया था. राज्यों को भी रेवेन्यू बढ़ने का सपना दिखाया गया. राज्यों से 87 फीसदी टैक्स संग्रह का अधिकार केंद्र ने ले लिया और कहा कि आपको इससे अपना हिस्सा मिल जाएगा.

जीएसटी कानून में पांच साल तक राज्यों के नुकसान की भरपाई का दायित्व केंद्र सरकार पर है. केंद्र ने भरोसा दिया था कि अगर राज्यों का रेवेन्यू कम होगा तो 14 फीसदी वृद्धि की दर से मुआवजा दिया जाएगा.

-दिल्ली के डिप्टी सीएम ने कहा कि जीएसटी लागू होने के तीन साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब तक न तो महंगाई कम हुई है और न ही राज्यों का रेवेन्यू बढ़ा है. कोरोना संकट के कारण सभी राज्यों का रेवेन्यू काफी कम हो गया है तो केंद्र सरकार ने मुआवजा देने के बदले हाथ खड़े कर दिए हैं.

-मनीष सिसोदिया ने कहा कि जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में बीजेपी शासित राज्यों सहित अनेक राज्यों ने केंद्र से नुकसान की भरपाई की मांग की.

– मनीष सिसोदिया ने कहा कि जीएसटी में सेस लेने की व्यवस्था है. वर्ष 2017-18 में काफी सेस आया था जबकि मुआवजा कम देने की जरूरत पड़ी थी.  इसके कारण केंद्र के पास 47000 करोड़ की अतिरिक्त राशि बच गई थी जिसे केंद्रीय फंड में डाल दिया गया, लेकिन आज जब राज्यों को मुआवजा देने की जरूरत है तो केंद्र सरकार अपने वैधानिक दायित्व से पीछे भाग रही है.

– दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने पूछा कि हम जीएसटी के पक्ष में हैं, लेकिन आज अगर जीएसटी के बदले सेलटैक्स की पुरानी व्यवस्था लागू होती, तो राज्य अपने लिए संसाधन खुद जुटा लेते. जब टैक्स वसूली के सारे अधिकार जीएसटी काउंसिल ने छीन लिए हैं तो राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों को सैलरी कैसे देगी?

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