आज हम आपको जयद्रथ के वध की अद्भुत कथा बताते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की नीति के चलते अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को चक्रव्यूह को भेदने का आदेश दिया गया। यह जानते हुए भी कि अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदना तो जानते हैं, लेकिन उससे बाहर निकलना नहीं जानते। दरअसल, अभिमन्यु जब सुभद्रा के गर्भ में थे तभी चक्रव्यूह को भेदना सीख गए थे लेकिन बाद में उन्होंने चक्रव्यूह से बाहर निकलने की शिक्षा कभी नहीं ली। अभिमन्यु श्रीकृष्ण के भानजे थे। श्रीकृष्ण ने अपने भानजे को दांव पर लगा दिया था।
दरअसल, अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया। चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के 6 चरण भेद लिए। इस दौरान अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध किया गया। अपने पुत्र को मृत देख दुर्योधन के क्रोध की कोई सीमा न रही। तब कौरवों ने युद्ध के सारे नियम ताक में रख दिए।
6 चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जैसे ही 7वें और आखिरी चरण पर पहुंचे, तो उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि 7 महारथियों ने घेर लिया। अभिमन्यु फिर भी साहसपूर्वक उनसे लड़ते रहे। सातों ने मिलकर अभिमन्यु के रथ के घोड़ों को मार दिया। फिर भी अपनी रक्षा करने के लिए अभिमन्यु ने अपने रथ के पहिए को अपने ऊपर रक्षा कवच बनाते हुए रख लिया और दाएं हाथ से तलवारबाजी करता रहा। कुछ देर बाद अभिमन्यु की तलवार टूट गई और रथ का पहिया भी चकनाचूर हो गया। अब अभिमन्यु निहत्था था। युद्ध के नियम के तहत निहत्थे पर वार नहीं करना था।
किंतु तभी जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर जोरदार तलवार का प्रहार किया। जिसके चलते अभिमन्यु के शरीर से रक्त की धार बहने लगी। वह कुछ समझ पाता इसके पहे ही एक के बाद एक सातों योद्धाओं ने उस पर तलवार से वार पर वार कर दिए। अभिमन्यु वहां वीरगति को प्राप्त हो गया।
अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार जब अर्जुन को मिला तो वे बेहद दुखी और क्रोधित हो उठे। निहत्थे अभिमन्यु को निर्ममता पुर्वक मारने के कारण अर्जुन भीतर से टूट से गए थे। अब उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु के लिए शत्रुओं का सर्वनाश करने का निर्णय किया। सबसे पहले उन्होंने यह शपथ ली कि कल संध्या का सूर्य ढलने के पूर्व जयद्रथ को मैं नहीं मार पाया तो इसी युद्ध भूमि पर अपनी चिता बनाकर आत्मदाह कर लूंगा। यह घोषणा सुनकर कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो गया और उन्होंने जयद्रथ को छुपा दिया गया, ताकि सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध न हो पाए और इस तरह अर्जुन खुद ही आत्महत्या कर मारा जाएगा। तब ऐसा में युद्ध यहीं समाप्त होकर कौरव पक्ष विजयी हो जाएगा।
पांडव पक्ष ने जब यह घोषणा सुनी तो सभी में निराशा और चिंता के बादल छा गए। श्रीकृष्ण ऐसे समय भी मुस्कुरा रहे थे। दिन भर युद्ध चलता रहा लेकिन जयद्रथ कहीं नजर नहीं आया। तब श्रीकृष्ण ने माया का खेला खेला और वक्त के पहले ही सूर्यास्त कर दिया। युद्ध भूमि में संध्या का अंधेरा छा गया। यह देख अर्जुन आत्मदाह के लिए चिता तैयार करने लगा। दोनों पक्ष के ही योद्धा यह नजारा देखने के लिए गोल घेरा बनाकर खड़े हो गए। कौरवों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। सभी के लिए यह एक तमाशा जैसा हो गया था।
इस बीच जिज्ञासा वश छुपा हुआ जयद्रथ भी हंसते हुए यह नराजा देखने के लिए यह सोचकर बाहर निकल आया कि अब तो सूर्यास्त हो ही गया है। जब श्रीकृष्ण ने जयद्रथ को देखा तो उन्होने अर्जुन को इशारा किया और तभी सभी ने देखा कि सूरज निकल आया है अभी तो सूर्यास्त हुआ ही नहीं है। यह देखकर जयद्रथ घबराकर भागने लगा लेकिन अर्जुन ने उसे भागने का मौका दिए बगैर उसकी गर्दन उतार दी।
श्रीकृष्ण की यह माया काम आयी। बहुत से लोगों को यह भ्रम है कि भगवान श्रीकृष्ण सूर्य को भीष्म पितामह के लिए उत्तरायण कर देते हैं जबकि यह सही नहीं है। सूर्यास्त वाली घटना जयद्रथ के वध से जुड़ी हुई है।
यह भी कहते हैं कि कर्ण के कहने पर सातों महारथियों कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, लक्ष्मण तथा शकुनि ने एकसाथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया। लक्ष्मण ने जो गदा अभिमन्यु के सिर पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण को फेंककर मारी। इससे लक्ष्मण की मृत्यु हो गई। बाद में जयद्रथ पीछे से वार कर अभिमन्यु को मार देता है।