जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती व अन्य के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत मामला दर्ज होने को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने शुक्रवार को पूछा कि किस आधार पर दोनों नेताओं के खिलाफ इस कानून के तहत कार्रवाई की गई है।
प्रियंका गांधी के साथ-साथ पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने भी दोनों नेताओं पर पीएसए लगाने को लेकर नाराजगी जताई। चिदंबरम ने भी ट्वीट कर मोदी सरकार पर निशाना साधा और इसे लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम करार दिया।
दरअसल, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की छह महीने की एहतियातन हिरासत पूरी होने से महज कुछ घंटे पहले गुरुवार (छह फरवरी) को उनके खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया। इससे पहले दिन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव और पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के वरिष्ठ नेता सरताज मदनी पर भी पीएसए लगाया गया था।
जन सुरक्षा कानून (PSA) सार्वजनिक सुरक्षा का हवाला देते हुए किसी भी व्यक्ति को दो साल तक बिना मुकदमे गिरफ्तारी या नजरबंदी की अनुमति देता है। कश्मीर के नेताओं के लिए ये कानून भले ही अब सिरदर्द बन गया हो, लेकिन इस कानून को यहीं के नेता लाए थे।
इस कानून को फारूक अब्दुल्ला के पिता व पूर्व सीएम शेख अब्दुल्ला लेकर आए थे। इस कानून को लकड़ी के तस्करों से निपटने के लिए लाया गया था। इसके तहत बिना मुकदमे दो तक जेल में रखने का प्रावधान था।
हालिया समय में इस कानून का इस्तेमाल आतंकियों, अलगाववादियों और पत्थरबाजों के खिलाफ किया जाता रहा है। 2016 में आतंकी बुरहान वानी की हत्या के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान पीएसए के तहत 550 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था।