महाशिवरात्रि पर की जाने वाली तमाम साधनाओं में आज आप हम आपको बताएंगे वह विशेष साधना जिसके करने से बड़े से बड़े शत्रु पर विजय पाई जा सकती है। इस ब्रह्मांड में तीन सबसे बड़े अस्त्र माने गए हैं। जिनमें पहला पशुपतास्त्र, दूसरा नारायणास्त्र एवं तीसरा ब्रह्मास्त्र है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव के पास त्रिशूल के अलावा चार शूलों वाला परम शक्तिशाली दिव्य अस्त्र है, जिसे पशुपतास्त्र कहते हैं।
शिव ने अर्जुन को दिया था यह पशुपतास्त्र
महाभारत के युद्ध में विजय की कामना करते हुए अर्जुन ने भगवान शिव की कठिन तपस्या करके इस पशुपतास्त्र को प्राप्त किया था। भगवान शिव ने इसे अर्जुन को देते हुए कहा था कि इसे तुम्हें चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसे पास रखने मात्र से ही तुम्हारी विजय हो जाएगी और यदि तुमने इसे गलती से चला दिया तो संसार में प्रलय आ जा जाएगा।
चारों दिशा से विजय दिलाने वाली साधना
आज के समय शिव के इस दिव्य अस्त्र को प्राप्त करना तो कठिन कार्य है लेकिन कोई भी साधक महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को प्रसन्न करके शत्रुओं पर विजय पा सकता है। शिव के इस चमत्कारी शूलास्त्र यानी पशुपतास्त्र की साधना सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इस साधना को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर या सोमवार के दिन किसी योग्य गुरु के सान्निध्य में विधि-विधान से ही करें। यदि इस साधना को कर पाने में असमर्थ हों तो महाशिवरात्रि के दिन पाशुपतास्त्र स्तोत्र का पाठ करें। भगवान शिव को समर्पित यह पाठ चारों दिशा से विजय दिलाता है।
महाकालेश्वर साधना
सनातन परंपरा में भगवान शिव की साधना को कल्याणकारी माना गया है। शिव के तमाम स्वरूपों में महाकाल की साधना सभी प्रकार की सिद्धि और मृत्यु के भय को दूर करने वाली है। भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना करने से बड़े से बड़ा संकट टल जाता है और शत्रुओं का नाश होता है। महाकाल की साधना महाशिवरात्रि के दिन या सोमवार के दिन उत्तर दिशा की ओर मुख करके करके पूजन करते हुए किसी योग्य पंडित के माध्यम से संपूर्ण करें। महाकाल की साधना मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर सभी संकटों से बचाने वाली है।
रामेश्वरम् साधना
भगवान शिव की इस दिव्य साधना को भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व किया था। इस महासाधना के पश्चात् प्रभु श्रीराम ने अपने शत्रु रावण का अंत कर विजय प्राप्त की थी। इस साधना को महाशिवरात्रि या किसी सोमवार को प्रदोषकाल में करें। कहने का तात्पर्य इसे संध्याकाल में यानी सूर्यास्त से पूर्व और सूर्यास्त के बाद अर्थात् दिन रात्रि के संधिकाल में दक्षिण की ओर मुख करके पीले आसन पर की जानी चाहिए। इस साधना को विधि-विधान से करने पर शत्रु पर विजय अवश्य प्राप्त होती है।