काश पटेल बने FBI प्रमुख

भारतीय-अमेरिकी काश पटेल ने शुक्रवार को आधिकारिक तौर पर भगवद गीता पर शपथ लेकर संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) के नौवें निदेशक के रूप में शपथ ली। शपथ पढ़ते समय पटेल का परिवार उनके बगल में खड़ा था और परिवार के अन्य सदस्य आगे की पंक्ति में बैठे थे।

फॉक्स न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, क्रिस्टोफर रे के बाद नौवें एफबीआई निदेशक के रूप में अमेरिकी सीनेट द्वारा पुष्टि किए जाने के बाद काश पटेल को अमेरिकी अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी ने आइजनहावर कार्यकारी कार्यालय भवन में शपथ दिलाई।

शपथ लेने के बाद पटेल ने कही ये बात
शपथ के बाद, पटेल ने कहा कि वह अमेरिकी सपने को जी रहे हैं और कहा कि एक भारतीय सबसे महान राष्ट्र की कानून प्रवर्तन एजेंसी का नेतृत्व करने वाला है। ऐसा कहीं और नहीं हो सकता है। उन्होंने एफबीआई के भीतर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भी मजबूत प्रतिबद्धता जताई। पटेल ने कहा कि मैं वादा करता हूं कि एफबीआई के भीतर और उसके बाहर जवाबदेही होगी।

ट्रंप ने काश पटेल की तारीफ की
इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने काश पटेल के प्रति अपना मजबूत समर्थन व्यक्त किया और उन्हें कठोर और मजबूत व्यक्ति कहा। काश पटेल के एफबीआई के निदेशक के रूप में शपथ लेने पर ट्रंप ने कहा कि मैं काश (पटेल) से प्यार करता हूं और उन्हें इस पद पर रखना चाहता हूं, इसका एक कारण यह है कि एजेंटों के मन में उनके लिए सम्मान था। वह उस पद पर अब तक के सर्वश्रेष्ठ के रूप में जाने जाएंगे।

गुजराती मूल का है परिवार
बता दें कि काश पटेल का जन्म न्यूयॉर्क में एक गुजराती अप्रवासी परिवार में हुआ था, जो कि पूर्वी अफ्रीका से 1980 में न्यूयॉर्क के क्वींस में आकर बस गए थे। उनका परिवार मूल रूप से वडोदरा का रहने वाला है। हालांकि, माता-पिता माता-पिता यूगांडा में रहते थे। पटेल ने कानून की डिग्री हासिल की है और फ्लोरिडा में पब्लिक डिफेंडर के रूप में अपना करियर शुरू किया। यहां उन्होंने राज्य और संघीय अदालतों में लोगों का प्रतिनिधित्व किया।

ट्रंप के पिछले कार्यकाल में भी मिली थी अहम भूमिका
काश पटेल को डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान भी अहम जिम्मेदारी मिली और वह रूस की जांच के FBI के संचालन में हाउस रिपब्लिकन में शामिल थे। उन्होंने एक विवादास्पद GOP ज्ञापन का मसौदा तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें ट्रम्प के 2016 के राष्ट्रपति अभियान की FBI की जांच में पक्षपात का आरोप लगाया गया था। यह दस्तावेज, जिसे अमेरिकी मीडिया द्वारा “काश मेमो” के रूप में संदर्भित किया गया था, रूस की जांच के आसपास के पक्षपातपूर्ण संघर्ष में विवाद का एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया।

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