इसके अलावा, बच्चे को कांटैक्ट लेंस देने का निर्णय करने से पहले अपनी चीजों के प्रति छोटे बच्चे की जिम्मेदारी की भावना पर भी विचार किया जाना चाहिए. ऐसा देखा गया है कि कांटैक्ट लेंस को साफ-सुथरी अच्छी जगह पर न रखा जाए तो आंखों में संक्रमण की आशंका रहती है. हाईजीन से संबंधित मुद्दों का ख्याल रखने के लिए डेली डिस्पोजेबल भी उपलब्ध हैं. पर यह तथ्य है कि बाजार में लेंस अभी भी किफायती नहीं हैं और इसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए.कांटैक्ट लेंस तब फायदेमंद होते हैं जब आपको लगे कि आपका बच्चा इसके साथ खेलेगा नहीं और खेल-खेल में यह चश्मे की तुलना में ज्यादा नहीं टूटेगा. हालांकि, इससे आपके बच्चे को संक्रमण का जोखिम नहीं होता है. यही नहीं, छोटा बच्चा दैनिक आधार पर लेंस की देखभाल की जिम्मेदारी भी नहीं ले सकता है और बहुत संभावना है कि बच्चा उनका उपयोग छोड़ देगा. उपलब्धता के लिहाज से भी, देश के ज्यादातर हिस्सों में चश्मे आसानी से उपलब्ध हैं.
क्या कोई बच्चा सुरक्षित ढंग से कांटैक्ट लेंस लगा सकता है? अगर हां तो किस आयु में और किस तरह के लेंस? वो कौन सी विशेष स्थितियां हैं जब चश्मे के मुकाबले कांटैक्ट लेंस जरूरी होते हैं? अमेरिकन ऑप्टोमेट्रिक एसोसिएशन के दि चिल्ड्रेन एंड कांटैक्ट लेंसेस अध्ययन के मुताबिक, सर्वेक्षण में भाग लेने वाले तीन में से दो (67%) चिकित्सकों ने कहा कि वे आठ साल से कम के बच्चों को चश्मा ही देते हैं. 8-9 की उम्र वाले बच्चों को (51%) और 10-12 की उम्र वाले बच्चों को (71%) ऑप्टोमेट्रिस्ट्स दृष्टि दोष ठीक करने के प्राथमिक उपाय के रूप में चश्मा देते हैं और कांटैक्ट लेंस को दूसरा तरीका बताते हैं.
भारत जैसे देश में चश्मा पहनना एक सामाजिक कलंक है. लड़कियों के मामले में यह खासतौर से सही है. अभिभावक मानते हैं कि अगर लड़की चश्मा पहनेगी तो शादी की उम्र में पहुंचने पर उसके विवाह में ज्यादा परेशानी होगी, संभावनाएं कम हो जाएंगी. नतीजतन, लड़की के लिए चश्मा स्वीकार करना एक चुनौती है. इसलिए, ओरबिस ने एक अभियान शुरू किया है-‘स्पेक्टेकल्स आर ब्यूटीफुल’(यानी चश्मे सुंदर हैं) ताकि चश्मे से संबंधित इन आशंकाओं को खत्म किया जा सके. हम चाहते हैं कि हरेक अभिभावक अपने बच्चे को (अगर उन्हें चश्मे की जरूरत है) चश्मा पहनाएं. इससे उनके बच्चे बेहतर और स्पष्ट कल देख पाएंगे.
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