दिवाली पर ग्रीन पटाखे पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में उभरे हैं। CSIR-NEERI द्वारा विकसित, ये पटाखे कम प्रदूषण करते हैं। भारतीय पटाखा उद्योग 6,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें ग्रीन पटाखों का योगदान बढ़ रहा है। पारंपरिक पटाखों की बिक्री घट रही है, जबकि ग्रीन पटाखों की बिक्री 20% तक बढ़ रही है। इनका उत्पादन मुख्य रूप से तमिलनाडु के शिवकाशी में होता है। सुप्रीम कोर्ट की अनुमति से इस साल बिक्री बढ़ने की उम्मीद है।
दिवाली के अवसर पर ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों के एक क्लीन विकल्प के तौर पर सामने आए हैं, जिनका मकसद पर्यावरण और सेहत पर पड़ने वाले असर को कम करना है। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च – नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-NEERI) ने ये इको-फ्रेंडली पटाखे बनाए हैं, जो कम पॉल्यूटेंट निकालते हैं और साउंड और विज़ुअल इफेक्ट भी एक जैसे बनाए रखते हैं।
ग्रीन क्रैकर्स बेरियम, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी नुकसानदायक चीजों का एमिशन 30 से 60 फीसदी तक कम करते हैं। मगर भारत में इन पटाखों का सबसे अधिक कारोबार कहां होता है और इनकी सालाना बिक्री कितनी है? आइए बताते हैं।
कितनी बड़ी है भारत की पटाखा इंडस्ट्री
भारत की पटाखा इंडस्ट्री 6,000 करोड़ रुपये की है। ग्रीन क्रैकर्स को अपनाने से पटाखा इंडस्ट्री में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है, जिसमें लंबे समय से पारंपरिक प्रोडक्ट्स का दबदबा रहा है। मगर पारंपरिक पटाखों की सालाना बिक्री अभी भी लगभग 70,000 से 80,000 टन है। पर उनका मार्केट शेयर हर साल 10 से 15 फीसदी कम हो रहा है।
बढ़ रही ग्रीन क्रैकर्स की बिक्री
ग्रीन क्रैकर्स की बिक्री बढ़ रही है, जो हर साल लगभग 20% बढ़कर 20,000-25,000 टन तक पहुंच रही है। ग्रीन क्रैकर्स का टर्नओवर लगभग 1,800 से 2,000 करोड़ रुपये के बीच का है।
कहां होता है ज्यादा प्रोडक्शन
ग्रीन क्रैकर्स का ज्यादातर लाइसेंस्ड प्रोडक्शन तमिलनाडु के शिवकाशी में ही होता है। रिपोर्ट्स के अनुसार वहां के मैन्युफैक्चरर CSIR-NEERI के अप्रूव्ड फॉर्मूलेशन और गाइडलाइन्स को फॉलो करते हैं।
इस बार और बढ़ेगी बिक्री
ग्रीन पटाखों की बढ़ती मांग को कुछ हद तक कानूनी स्पष्टता से भी मदद मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिवाली के दौरान दिल्ली और नेशनल कैपिटल रीजन (NCR) में सर्टिफाइड ग्रीन पटाखों की बिक्री और रेगुलेटेड इस्तेमाल की इजाजत दी है। इससे इस साल ग्रीन क्रैकर्स की सेल बढ़ने की उम्मीद है।
असली होने और क्वालिटी कंट्रोल पक्का करने के लिए, सर्टिफाइड ग्रीन क्रैकर्स में QR कोड लगे होते हैं। नकली प्रोडक्ट्स को रोकने के लिए बनाया गया यह सिस्टम, यूजर्स को उनकी खरीदारी की सच्चाई वेरिफाई करने देता है और अप्रूव्ड सुरक्षा स्टैंडर्ड्स को फॉलो करने के लिए बढ़ावा देता है।