विधायकों की संख्या के हिसाब से बिहार के तीन सबसे बड़े दलों में से एक राजद अभी सबसे ज्यादा नाजुक दौर से गुजर रहा है। राजद के निर्माता-निर्देशक एवं मार्गदर्शक लालू प्रसाद जेल में हैं और उन्होंने जिस तेजस्वी यादव को पार्टी की पतवार थमाई, वह पिछले 25 दिनों से अदृश्य हैं। कनिष्ठ-वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता संशय में हैं कि आगे क्या होगा। उन्हें हार के गम से उबरने के उपाय नहीं सूझ रहे। वहीं राजद में भी तेजस्वी को लेकर कई तरह की बातें की जा रही हैं। इतने दिनों का अज्ञातवास किसी के गले नहीं उतर रहा है। वरिष्ठ नेताओं एवं प्रवक्ताओं के मुंह पर ताला लगा देने के कारण संशय और गहरा गया है। तेजस्वी के दिल्ली में होने के मनोज झा के हालिया बयान के भावार्थ निकाले जा रहे हैं। तेजस्वी अगर दिल्ली में हैं तो क्या कर रहे हैं? किससे मिल रहे हैं? छुप-छुप कर कोई गुल तो नहीं खिला रहे, बता दें कि मनोज झा ने कंफर्म होकर कहा था कि तेजस्वी दिल्ली में हैं।
बिहार में जारी है कानाफूसी- केंद्र में राजग की नई सरकार के गठन के बाद से बिहार में भी कई तरह की कानाफूसी जारी है। चमकी बुखार है। मगध-शाहाबाद क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा है। लोकसभा चुनाव में राजद ने जिस महागठबंधन का नेतृत्व किया है, उसके अस्तित्व पर संकट है। भविष्य पर सवाल है। घटक दलों के बड़े नेताओं का मनमाना रवैया है। उल्टे-पुल्टे बयान हैं। सियासी उथल-पुथल के पूरे संकेत हैं। बस नेता प्रतिपक्ष नहीं हैं।
प्रवक्ताओं को भी दे दी गई है छुट्टी- हैरत तो यह कि बात-बात पर ट्वीट करके राज्य और केंद्र सरकार पर हमला करने वाले उनके बयान भी अब नहीं आ रहे हैं। विपक्ष की एकजुटता का भी अता-पता नहीं है। कार्यक्रमों और राजनीतिक समारोहों के जरिए केवल सत्ता पक्ष ही सक्रिय दिख रहा है। तेजस्वी की अनुपस्थिति में मीडिया में राजद की कुछ हद तक मौजूदगी का अहसास कराने वाले प्रवक्ताओं को भी छुट्टी दे दी गई है।
28 जून से शुरू होनेवाला है बजट सत्र- इसी बीच 28 जून से बिहार विधानसभा का बजट सत्र भी शुरू होने वाला है। ऐसे में सदन में राजद का नेतृत्व कौन करेगा? राबड़ी देवी विधान परिषद में अपनी पार्टी की कमान संभाल सकती हैं, लेकिन विधानसभा में यह काम किसके जिम्मे होगा। अब्दुल बारी सिद्दीकी, भोला यादव या ललित यादव किसके हाथ में कमान रहेगी। या खुद तेजस्वी तबतक आ जाएंगे। किसी भी सवाल का जवाब राजद के किसी नेता के पास नहीं है। सबको सिर्फ तेजस्वी का इंतजार है।
राजद में भी कई तरह की बातें- राजद में भी तेजस्वी को लेकर कई तरह की बातें की जा रही हैं। इतने दिनों का अज्ञातवास किसी के गले नहीं उतर रहा है। सबको लग रहा है कि कुछ चल रहा है। तेजस्वी के दिल्ली में होने के मनोज झा के हालिया बयान के भावार्थ निकाले जा रहे हैं। तेजस्वी अगर दिल्ली में हैं तो क्या कर रहे हैं? किससे मिल रहे हैं? छुप-छुप कर कोई गुल तो नहीं खिला रहे? वरिष्ठ नेताओं एवं प्रवक्ताओं के मुंह पर ताला लगा देने के कारण संशय और गहरा गया है। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के कारणों की पड़ताल के लिए तेजस्वी ने जगदानंद सिंह की अध्यक्षता में जिस तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था, उसने अपना काम पूरा कर लिया है। समिति से हफ्ते भर में रिपोर्ट मांगी गई थी, किंतु तीन सप्ताह से ज्यादा बीत गए। असमंजस है कि रिपोर्ट किसे सौंपी जाए।
लालू की जमानत का था इंतजार- राजद के कुछ वरिष्ठ नेताओं को रांची हाईकोर्ट में 21 जून को लालू प्रसाद की जमानत याचिका पर सुनवाई का इंतजार था। माना जा रहा था कि सियासी कल-बल के जरिए तेजस्वी अपने पिता की जमानत कराने की जुगत में हैं। वह तारीख भी बीत गई तो इंतजार छह दिन और टल गया। अब कहा जा रहा है कि विधानसभा के बजट सत्र से पहले तेजस्वी कभी भी प्रकट हो सकते हैं। इंतजार लंबा हो रहा है। वह अदृश्य तो हुए थे 29 मई को, लेकिन ओझल 12 दिन पहले ही हो गए थे। आखिरी चरण के चुनाव के अंतिम प्रचार के बाद 17 मई को ही उन्होंने पटना छोड़ दिया था। यहां तक कि अपना वोट डालना भी जरूरी नहीं समझा था।