जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने नेताओं को हिरासत में लेने के फैसले पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया, ‘पिछले 24 घंटे में हुर्रियत नेताओं और जमात संगठन के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है. मनमाने तरीके से उठाया गया ये कदम जम्मू-कश्मीर में मुद्दों को उलझा देगा. किस बिनाह पर नेताओं की गिरफ्तारी हुई? आप किसी शख्स को कैद कर सकते हो, उसके विचारों को नहीं.’

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले के बाद अलगाववादियों पर लगाम कसने की प्रक्रिया और तेज हो गई है. इसी कड़ी में शुक्रवार रात जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक को हिरासत में ले लिया गया. इसके अलावा पाकिस्तान की ओर से आतंकी गतिविधियों की आशंका के मद्देनजर सीमा पर भी चौकसी बढ़ाई गई है. वहीं शनिवार सुबह लाल चौक पर तिरंगा फहराने गए अकाली दल के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है.
महबूबा के अलावा जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने भी अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘लगता है सरकार गिरफ्तारी का फायदा उठाना चाहती है, लेकिन सावधान हो जाएं क्योंकि 1990 में भी बड़ी तादाद में गिरफ्तारियां हुई थीं, नेताओं को जोधपुर और देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया. हालात ज्यादा बिगड़े. यह पहले से आजमाया हुआ एक विफल मॉडल है, कृपया यह बंद करें, यह काम नहीं आना वाला, हालात और खराब होंगे.’
सीआरपीएफ के काफिले पर बीती 14 फरवरी को हुए आतंकी हमले के आठ दिन बाद गिरफ्तारियों की यह कार्रवाई हुई है. पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गये थे. हमले के बाद से राज्य में पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है. साथ की सुरक्षाबलों की 100 और कंपनियों को जम्मू कश्मीर में तैनात किया गया है.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 22 अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा और सरकारी सुविधाएं वापस ले ली थी. इसके अलावा सूबे के 155 राजनीतिक शख्सियतों को दी गई सुरक्षा में बदलाव किया था. इस लिस्ट में यासीन मलिक का भी नाम है. गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक इन अलगाववादी नेताओं और राजनीतिक व्यक्तियों की सुरक्षा में एक हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी और 100 के करीब सरकारी वाहन लगे हुए थे.
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