कश्मीरी लड़की की पाकिस्तानी आर्मी ऑफिसर से शादी मेघना गुलजार की कालिंग सहमत में

में फिल्म भारत, पाकिस्तान और युद्ध की स्थिति को दिखाती है. ये फिल्म पाकिस्तान विरोधी, युद्ध के बाद की स्थिति आदि पर आधारित नहीं बल्कि इसमें एक साधारण-सी लड़की की असाधारण कहानी को दिखाया

फिल्म ‘तलवार’ के लिए वाहवाही बटोरने के बाद मेघना गुलजार अपने निर्देशन में एक और फिल्म लेकर आ रही हैं. हरिंदर सिक्का के उपन्यास ‘कॉलिंग सहमत’ पर आधारित ये फिल्म कश्मीरी लड़की की जिंदगी पर है. मेघना का ये थ्रिलर भारत-पाक युद्ध 1971 के पृष्ठभूमि में एक कश्मीरी लड़की की कहानी है. उसकी शादी पाकिस्तान के एक आर्मी ऑफिसर से होती है, जो न सिर्फ कई खुफिया जानकारी हासिल करने के साथ पाकिस्तान की युद्ध रणनीति को पस्त कर देती है बल्कि अपने साहस से सैकड़ों भारतीय जवानों की जान भी बचाती है.

जंगली पिक्चर्स की प्रेजिडेंट प्रीति साहनी ने किताब पर फिल्म बनाने के लिए दो साल तक राइट्स लेने के लिए कड़ी मशक्कत की है. पिछले साल तलवार फिल्म आने के बाद उन्होंने मेघना से इस फिल्म के निर्देशन के लिए बात की थी. उस वक्त मेघना ने हामी भर दी थी, लेकिन काफी महीनों बाद उन्होंने इस बारे में फिर से बात की.

फिल्म की शुरुआत के बारे में मेघना बताती है, ‘फरवरी में उन्हें एक और प्रोडक्शन हाउस ने मीटिंग के लिए बुलाया था, लेकिन उस प्रोडक्शन हाउस के साथ बात बनी नहीं. इसके कुछ समय बाद मैं किताब के लेखक के साथ निजी तौर पर मिली. इसके बाद प्रीति और जंगली पिक्चर्स और मैंने साथ मिलकर काम करने का फैसला किया. हम सब दुबारा साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस सर्कल को पूरा करने के लिए इससे बेहतर तरीका नहीं था.’

इसके साथ ही मेघना कहती हैं, ‘सबसे खास बात ये है कि जब किताब आई तो इसके लेखक ने मेरे पिता गुलजार से आकर कहा मुझे इस कहानी से आत्मिक जुड़ाव महसूस होता है.

मेघना आगे कहती हैं, ‘कहानी की नायिका एक औरत है. आज तक हनी ट्रैप पर आधारित कई फिल्में आई हैं, पर ये फिल्म उन फिल्मों से हटकर है. कहानी की मुख्य नायिका इसलिए अलग है क्योंकि वो एक जासूस होने के साथ एक बेटी, पत्नी और देशभक्त भी है.’10_12_2016-calling_sehmat_meghna

वो अपने परिवार और देश के बीच कौन-सा फैसला लेती है. किसे चुनती है, जिसका असर उसकी जिंदगी पर कैसे पड़ता है. फिल्म की कहानी इसी के बीच घूमती है.

फिल्म 1971 की पृष्ठभूमि पर आधारित जरूर है, लेकिन इसमें बॉर्डर फिल्म की तरह एक्शन सीन नहीं है क्योंकि इसके वास्तविक संघर्ष की बजाय इरादतन लड़ाई को दिखाया गया है.

मेघना बेशक किसी युद्धक्षेत्र में नहीं जन्मी और न ही उनके जहन में ऐसी कोई यादें हैं, लेकिन उन्होंने अपने बड़े-बुर्जुगों से ऐसी कहानियां सुनी है. ये कहानियां बेशक मुंबई में रहने वाले लोगों को प्रभावित नहीं करती, लेकिन हमारे देश के इतिहास में एक अहम माइलस्टोन है.

साथ ही वर्तमान हालातों के बारे में वो कहती हैं, ‘आज के हालातों को देखा जाए तो पड़ोसी देशों के साथ संबंध भी अहम है. कहानी में मौजूद मानवीय भावनाएं फिल्म को और भी खास बनाती है. मेरे पिता के दोस्त पाकिस्तान में हैं. कागजों और राजनीतिक रूप से हम अलग हैं, लेकिन अंत में देखा जाए तो हमारा पहनावा, संस्कृति सबकुछ मिलता-जुलता है.’

फिल्म भारत, पाकिस्तान और युद्ध की स्थिति को दिखाती है. ये फिल्म पाकिस्तान विरोधी, युद्ध के बाद की स्थिति आदि पर आधारित नहीं बल्कि इसमें एक साधारण-सी लड़की की असाधारण कहानी को दिखाया गया है.

सच्ची घटना पर आधारित होने की वजह से फिल्म और भी दमदार लगती है. फिल्म बनाते समय ये पूरी कोशिश की गई है कि फिल्म सच्ची कहानी से भटके नहीं.

क्या इस प्रोजेक्ट में उनके पिता ने भी साथ दिया है? इस सवाल के जवाब में मेघना मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘उन्होंने तलवार फिल्म में मुझे काफी कुछ सिखाया, सिवाय गाने लिखना छोड़कर. वो मेरे मार्गदर्शक हैं. अपनी स्क्रिप्ट पूरी करने के बाद, मैं उनसे फीडबैक लेने जाऊंगी और फिर गानों के लिए भी.

 

 

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