जिंदगी में परेशानियां आती रहती हैं और सबसे खास बात यह है कि बड़ी से बड़ी परेशानी का हल बहुत सामान्य होता है। हम यहां एक व्यापारी की कहानी बता रहे हैं, जिसने त्रस्त होकर संन्यास लेने का मन बना लिया था, फिर उसे ऐसा ज्ञान मिला कि उसका घर और दुकान मंदिर जैसे लगने लगे।
एक बार की बात है मगध के व्यापारी को व्यापार में बहुत लाभ हुआ। इसके बाद से वह अपने अधीनस्थों से अहंकारपूर्ण व्यवहार करने लगा।
व्यापारी का अहंकार इतना प्रबल था कि उसके देखते हुए उसके परिजन भी अहंकार के वशीभूत हो गए। जब सभी के अहंकार आपस में टकराने लगे तो घर का वातावरण नर्क की तरह हो गया।
दुःखी होकर एक दिन वह व्यापारी भगवान बुद्ध के पास पहुंचा और बोला- ‘भगवन्! मुझे इस नर्क से मुक्ति दिलाइए। मैं भी भिक्षु बनना चाहता हूं।’ भगवान बुद्ध गंभीर स्वर में बोले, ‘अभी तुम्हारे भिक्षु बनने का समय नहीं आया है।’
उन्होंने कहा कि भिक्षु को पलायनवादी नहीं होना चाहिए। जैसे व्यवहार की अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो, स्वयं भी दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो।
ऐसा करने से तुम्हारा घर ही मंदिर बन जाएगा।’ उस व्यापारी ने भगवान बुद्ध की सीख को अपनाया और घर का वातावरण स्वतः बदल गया।
आप दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसंद नहीं। व्यापारी का अहंकार इतना प्रबल था कि उसके देखते हुए उसके परिजन भी अहंकार के वशीभूत हो गए।