उदित राज का कटेगा टिकट, आडवाणी की तरह उम्र नहीं है वजह

लोकसभा चुनाव-2019 के तहत  उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र से किसी स्थानीय नेता को ही उम्मीदवार बनाए जाने की मांग भाजपा में लगातार जोर पकड़ रही है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा ने दोनों ही बार बाहरी नेता को मैदान में उतारा। इस बार भी आधा दर्जन से अधिक बाहरी नेता इस सीट पर नजर गड़ाए हैं, मगर भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता अपने बीच का ही उम्मीदवार चाहते हैं।

जिस तरह से भाजपा ने लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी कई दिग्गज नेताओं की टिकट काट दी है, तो ऐसे में सांसें उत्तर पश्चिम क्षेत्र से सांसद उदित राज के समर्थकों की रुक जा रही हैं। पार्टी के अधिकांश स्थानीय नेता मानकर चल रहे हैं कि पार्टी इस बार शायद ही उदित राज पर दांव लगाए।

देश के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र बाहरी दिल्ली का हिस्सा रहा दिल्ली देहात का बहुत बड़ा इलाका वर्ष 2008 में लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र के रूप में असितत्व में आया। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस लोकसभा क्षेत्र में दस विधानसभा क्षेत्रों में से तीन विधानसभा क्षेत्र भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। नगर निगम के वार्डों की संख्या 47 है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही बाहरी नेताओं को उम्मीदवार बनाया था। तब कांग्रेस की कृष्णा तीरथ ने भाजपा की मीरा कांवरिया को करीब एक लाख 84 लाख वोटों के अंतर से मात दी थी।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में  भाजपा ने फिर इंडियन जस्टिस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष उदित राज पर दांव लगाया। उदित राज को 6,29,860, कांग्रेस की कृष्णा तीरथ को 1,57,468 एवं आम आदमी पार्टी की राखी बिड़लान को 5,23,058 को वोट मिले थे। पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी ने यहां से स्थानीय राखी बिड़लान को उतारा था। चूंकि आम आदमी पार्टी ने इस बार भी भाजपा के ही पूर्व विधायक गुग्गन सिंह को लोकसभा चुनाव के लिए हरी झंडी दे दी है तो ऐसे में भाजपा के ऊपर पर भी दवाब किसी स्थानीय नेता को ही उम्मीदवार बनाने का है।

भाजपा के स्थानीय नेता भी अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि अगर AAP व कांग्रेस के बीच गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस के पास गई तो कांग्रेस भी इस बार किसी बाहरी नेता पर दांव लगाने के बजाय पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान, पूर्व विधायक जयकिशन, सुरेंद्र कुमार में से ही किसी को मैदान में उतार सकती है।

जब तक यह इलाका बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र का हिस्सा रहा तो आजादी के बाद पांच बार हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। वर्ष 1977 में जनता पार्टी बनी तो कांग्रेस के चौ. ब्रहम प्रकाश ने जनता पार्टी का दामन थाम पहली बार कांग्रेस को इस इलाके में शिकस्त दी। लंबे समय तक चौधरी ब्रहमप्रकाश का वर्चस्व इस इलाके में रहा जिसे बाद में तोड़ा कांग्रेस के सज्जन कुमार ने। 84 के दंगों ने सज्जन कुमार के कैरियर को ब्रेक लगा दिया और कांग्रेस ने चौ. भरत सिंह को मैदान में उतार दिया तो वह भी सांसद बने, लेकिन वर्ष 1989 में चली राम मंदिर और मंडल कमीशन की लहर में यहां के मतदाताओं ने जनता दल के चौ. तारीफ सिंह को अपना सांसद चुना।

वर्ष 1991 के चुनाव मे कांग्रेस ने फिर सज्जन कुमार पर दांव लगाया तो उन्होंने पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दी थी, मगर वर्ष 1996 के बाद डॉ. साहिब सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने देहात में जड़ें जमानी शुरू कर दी और फिर वर्ष 1996 एवं 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के कृष्ण लाल शर्मा विजयी हुए।

कृष्ण लाल शर्मा का निधन हुआ तो भाजपा ने डा. साहिब सिंह को ही मैदान में उतारा तो वह पहली बार संसद पहुंचने में कामयाब रहे। मगर फिर 2004 के चुनाव में कांग्रेस ने सज्जन कुमार को उतारा तो बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र के आखिरी लोकसभा चुनाव में डॉ. साहिब सिंह वर्मा को शिकस्त दे दी।

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