उत्तराधिकार कानून के तहत महिला के पिता के वारिस भी महिला की संपत्ति प्राप्त करने के लिए उत्ताधिकारी हैं और उन्हें अनजान नहीं माना जा सकता है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक उत्तराधिकार विवाद के मामले में फैसला सुनाते हुए कही। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 15(1)(डी) का संदर्भ देते हुए कहा कि महिला के पैतृक पक्ष के वारिस में उन व्यक्तियों का उल्लेख है जो संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
पीठ ने कहा कि धारा 15(1)(डी) में इंगित किया गया है कि पिता के वारिस उत्तराधिकारी के तहत कवर हैं और उत्तराधिकार प्राप्त कर सकते हैं। अगर महिला के पिता के उत्तराधिकारी उन लोगों में शामिल है जो संभवत: उत्तराधिकार प्राप्त कर सकते हैं तो उन्हें महिला के लिए अजनबी या परिवार से अलग नहीं माना जा सकता। हिंदू उत्तराधिकार कानून की यह धारा हिंदू महिला के लिए उत्तराधिकार के सामान्य नियम से संबंधित है जो कहती है कि पिता के वारिसों को भी संपत्ति का उत्तराधिकार दिया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि ‘परिवार’ शब्द को विस्तृत संदर्भ में समझना चाहिए और यह केवल करीबी रिश्ते या कानूनी वारिस तक ही सीमित नहीं हैं। इनमें वे व्यक्ति भी हैं जो किसी तरह पूर्वज से जुड़े हुए हों, दावे का एक अंश हो या भले ही उनके पास एक उत्तराधिकारी हो। सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला जगनो नाम की एक महिला के उत्तराधिकार विवाद में सुनाया। महिला ने पति शेर सिंह की मौत के बाद संपत्ति का बैनामा अपने भाई के बेटों के नाम करा दिया था। जगनो के इस फैसले को उसके पति के भाई ने चुनौती दी थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जगनो देवी जो वर्ष 1953 में शेर सिंह की मौत के बाद विधवा हुईं और उत्तराधिकार में उन्हें खेती की आधी जमीन मिली। जब उन्होंने उत्तराधिकार में जमीन दी तब वह उसकी मालकिन थीं। पीठ ने कहा, ‘इसलिए हम याचिककर्ता के वकील के तर्क को योग्य नहीं पाते कि प्रतिवादी परिवार के लिए अजनबी हैं। हम इस अपील में योग्य नहीं पाते।’