उत्तराखंड: हरीश रावत के स्टिंग प्रकरण में सुनवाई टली, जानिए क्‍या है मामला

हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग प्रकरण से सम्बंधित मामले की सुनवाई टल गई है। अब मामले में अगली सुनवाई के लिए आने वाले सोमवार की तिथि नियत की  है। सुनवाई वरिष्ठ न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ में हुई।

पिछली सुनवाई की तिथि को न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे ने इस मामले को सुनने से इन्‍कार करते हुए दूसरी बेंच को रेफर कर खुद को अलग कर लिया था। जिसके बाद मुख्य न्यायधीश ने इस प्रकरण को न्यायमूर्ति धूलिया की एकलपीठ को सुनने को दिया है। पूर्व सीएम पर सरकार बचाने के लिए स्टिंग में विधायकों की खरीद फरोख्त का आरोप है।

20 सितम्‍बर को हुई पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ में हरीश रावत के अधिवक्ता डीडी कामथ, वीबीएस नेगी, अवतार सिंह रावत ने बहस करते हुए सीबीआई की इस मामले में दाखिल प्रारंभिक जांच रिपोर्ट को अवैध करार दिया। साथ ही इस रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लेने की भारत सरकार व सीबीआई के अधिवक्ता राकेश थपलियाल की दलील का विरोध किया।

कोर्ट में अनुच्छेद 356 को लेकर भी बहस हुई थी। करीब आधा घंटा बहस के चली सुनवाई के बाद अगली सुनवाई के लिए डेट पड़ गई थी। पूर्व में सीबीआई द्वारा कोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। जिसमें सीबीआई ने कहा है कि हरीश रावत के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने जा रहे हैं । वहीं रावत के अधिवक्ता ने साफ किया था गिरफ्तारी का कोई सवाल ही नहीं है। 

रावत के ताकत देने उमड़े थे कांग्रेसी दिग्गज

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग मामले में सुनवाई के बहाने अर्से बाद राज्य कांग्रेस ने एकजुटता दिखाकर साफ कर दिया कि गुटबाजी के बाद भी सरकार के खिलाफ लड़ाई में सब एक हैं।

नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट, जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल, पूर्व विधायक सरिता आर्य, पूर्व मंत्री हरीश दुर्गापाल, नगर अध्यक्ष अनुपम कबड़वाल, पालिकाध्यक्ष सचिन नेगी समेत कुमाऊँ भर से नेता नैनीताल पहुंचे थे। खुद रावत ने आभार भी प्रकट किया था। 

क्‍या है स्टिंग मामला 

2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत के नेतृत्व में नौ कांग्रेस विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के ख़िलाफ़ बगावत कर दी थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने हरीश रावत सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। हरीश रावत हाईकोर्ट गए थे जहां से उनकी सरकार बहाल हुई थी।

इस दौरान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के एक निजी चैनल के मालिक ने हरीश रावत का स्टिंग किया था जिसमें वह हरीश रावत से विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त की बात करते दिखाई दिए थे। इसी स्टिंग को आधार बनाकर तत्कालीन राज्यपाल ने इसकी सीबीआई जांच की सिफ़ारिश कर दी थी।

सीबीआई जांच 

सरकार बहाल होने के बाद हरीश रावत ने इस केस की जांच सीबीआई के बजाय एसआईटी से करवाने की सिफ़ारिश की थी लेकिन अंततः यह मामला सीबीआई के पास ही रहा। इसके बाद हरीश रावत गिरफ़्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट की शरण में चले गए थे और हाईकोर्ट ने सीबीआई को आदेश दिया था कि कोई भी कार्रवाई करने से पहले वह कोर्ट से अनुमति ले। 

तीन सितंबर को सीबीआई ने हाईकोर्ट को यह जानकारी दी थी कि उसने इस केस की जांच पूरी कर ली है और वह जल्द ही इस मामले में एफ़आईआर दर्ज करना चाहती है। हाईकोर्ट में इस मामले की पहली सुनवाई 20 सितंबर को को की थी। 

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