उत्तराखंड की सातवीं राज्यपाल बेबी रानी मौर्य सोमवार को अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर रही हैं। इस दौरान संवैधानिक दायित्वों और मर्यादाओं का पालन करते हुए उन्होंने प्रदेश सरकार का लगातार मार्गदर्शन किया। प्रारंभ से ही महिलाओं और बच्चों के हितों के लिए समर्पित और सक्रिय रहीं बेबी रानी मौर्य ने महिला सशक्तीकरण और उनके आर्थिक स्वावलंबन की बड़ी पैरोकार की छवि बनाई है।
- उत्तराखंड में राज्यपाल के रूप में आप एक साल का कार्यकाल पूर्ण करने जा रही हैं। कैसा रहा आपका एक साल का अनुभव।
- जब पद संभाला तो एक महीने के भीतर ही सभी जिलों में प्रवास कर वहां की स्थिति जानने का प्रयास किया। महिलाओं, किसानों के साथ ही जनप्रतिनिधियों से भी मुलाकात की। अधिकारियों फीडबैक लिया। कोशिश की कि जिलों में ही समस्याओं का समाधान हो जाए। इसमें अधिकारियों का भी पूरा सहयोग मिला। इस एक साल के दौरान 70 से 80 प्रतिशत तक तो इसमें कामयाबी मिली ही।
- आपने पिछले एक साल में राज्य के तमाम हिस्सों का दौरा किया। उत्तराखंड को अलग राज्य बनेे 19 साल होने जा रहे हैं। क्या लगता है उत्तराखंड जिस अवधारणा के साथ जन्मा था, उसके अनुरूप विकास कर पाया।
- उत्तराखंड का निर्माण पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के समग्र विकास की अवधारणा के साथ किया गया था। पहाड़ के लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए राज्य बना। धीरे-धीरे राज्य विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है। पिछले साल आयोजित इन्वेस्टर्स समिट इसका अच्छा उदाहरण है। इस प्रयास से पर्वतीय क्षेत्र में भी उद्योगों की स्थापना का रास्ता साफ हुआ है।
- बतौर कुलाधिपति राज्य की उच्च शिक्षण संस्थाओं के कामकाज और शिक्षा की स्थिति पर आपकी क्या राय बनी। भविष्य में किस तरह के सुधारों की उम्मीद करती हैं।
- उच्च शिक्षा में सुधार की जरूरत है। इसके लिए लगातार प्रयास जारी हैं। जल्द ही अंब्रेला एक्ट लाया जा रहा है। मेरा मानना है कि विश्वविद्यालयों को सरकार और समाज के साथ एक्टिव पार्टनरशिप करनी चाहिए। शोध कार्यों के जरिये सामाजिक एवं आर्थिक चुनौतियों का समाधान तलाशना चाहिए। विवि के पाठ्यक्रमों को रोजगारपरक बनाने की जरूरत है। कई सालों से लंबित कॉलेजों की संबद्धता के प्रकरणों के निस्तारण को वन टाइम समाधान के रूप में विश्वविद्यालयों की कार्य परिषद को अधिकृत कर दिया गया है। भविष्य में संबद्धता के प्रकरणों के लिए कैलेंडर बनाने के निर्देश दिए गए हैं। इस एक साल में कुलपति सम्मेलन का भी आयोजन किया गया।
- राज्य हर साल बरसात में गंभीर आपदा की स्थिति से जूझता है, क्या आप राज्य में आपदा प्रबंधन तंत्र की स्थिति, या कहें तो सक्रियता से संतुष्ट हैं।
- उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि बरसात के दौरान अक्सर आपदा की स्थिति बन जाती है। पिछले सालों में आपदा प्रबंधन की दिशा में काफी काम हुआ है, लेकिन बेहतरी की गुंजाइश तो हमेशा रहती है। आपदा पर तो नियंत्रण नहीं किया जा सकता, लेकिन आपदा के बाद राहत और बचाव कार्य तुरंत आरंभ कर इसके असर को कम किया जा सकता है। हालांकि आपदा प्रबंधन में काफी सुधार की दरकार है, लेकिन आपदा प्रबंधन के कार्य में हमारे अधिकारियों और सुरक्षा बलों की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही है।-
- हाल ही में राज्य सरकार ने कार्मिकों की कार्यशैली में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं, मसलन अनिवार्य सेवानिवृत्ति। आपका क्या कहना है इस विषय में।
- अधिकारी और कर्मचारी जब अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तभी तो सरकारी कार्यशैली में सुधार आएगा। कार्यशैली बेहतर होगी तो सुशासन भी कायम होगा। सरकार का 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लापरवाह कार्मिकों को सेवानिवृत्त करने का फैसला उचित है। हालांकि, यह व्यवस्था नई नहीं है लेकिन अब सरकार गंभीरता से इसे लागू करने जा रही है तो इसकी सराहना की जानी चाहिए। इसके अच्छे परिणाम भविष्य में नजर आएंगे।
-राज्य में महिला उत्थान के लिए आप स्वयं लगातार सक्रिय रही हैं, क्या आप राज्य में महिलाओं की स्थिति से संतुष्ट हैं।
-मेरा मानना है कि महिलाओं के लिए स्वरोजगार को प्रोत्साहित कर पर्वतीय क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में बड़ा और सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों में तो आर्थिकी पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित है और जिस तरह से वे हर क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, उससे गर्व की अनुभूति होती है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए पर्वतीय क्षेत्र में उद्योग स्थापित किए जाने चाहिए। पौड़ी, पिथौरागढ़ जिलों में महिला स्वरोजगार की स्थिति मैंने स्वयं देखी है। अब हंस फाउंडेशन अल्मोड़ा जिले में भी महिला उत्थान के लिए अच्छा काम कर रहा है।