रोजगार के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाना और रोजगार न मिलने पर सरकार को कोसने वाले युवाओं के लिए पौड़ी की सोनी बिष्ट एक बेहतर उदाहरण बनकर सामने आई है।
शादी के एक माह बाद ही ससुराल में मशरूम उत्पादन का काम शुरू किया है और वह इस काम से प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपये भी कमा रही हैं। वह कहती हैं कि उसका लक्ष्य शहर को मशरूम सिटी बनाने के साथ ही रोजगार के लिए पहाड़ी क्षेत्र से पलायन को रोकना है।
चमोली जनपद के जोशीमठ विकासखंड रंगी गांव की सोनी (25) की शादी बीते जून में पौड़ी निवासी आदित्य रावत से हुई। आदित्य मर्चेंट नेवी में तैनात हैं। सोनी बताती हैं कि मूलभूत सुविधाओं की कमी और रोजगार न होने से युवाओं को पलायन करते देखा है। वह बचपन से ही कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जिससे कि घर में ही रोजगार मिले और पलायन रुके।
फिर उसे मशरूम उत्पादन के बारे में जानकारी मिली। उसे लगा कि घर में ही मशरूम उत्पादन कर कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। इसके लिए सोनी ने मशरूम गर्ल नाम से मशहूर दिव्या रावत से प्रशिक्षण लिया। अब सोनी घर में ही मशरूम उत्पादन कर रही हैं।
300 बैग से शुरू किया गया उनका मशरूम उत्पादन 600 बैग तक पहुंच गया है और वह शुरुआती दौर में प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह कमा रही हैं। सोनी बताती है कि उसका लक्ष्य शहर को मशरूम सिटी बनाना है।
सोनी बुआ को मानती हैं प्रेरणास्त्रोत
सोनी बताती हैं कि उनकी बुआ ने बचपन से यही सिखाया है कि लड़कियों को घर के अंदर तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। लड़कियों को पूरा हक है कि सपने देखे और उन्हें हकीकत में बदलने के लिए प्रयास करें। सोनी बताती हैं कि उनकी बुआ ने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया। वहीं शादी के बाद सोनी के सास-ससुर ने भी पूरा सहयोग किया। आज ससुराल पक्ष के सभी लोग हर कदम पर सोनी के साथ हैं।
सास विमला रावत और ससुर गुलाब सिंह रावत कहते हैं कि हमारे धर्म में बेटियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। हमारी बहू ने इस बात को साबित भी किया है। हम अपनी बहू के संकल्प को पूरा करने में उसका पूरा सहयोग कर रहे हैं।
सोनी कहती हैं कि मैंने बचपन से गांव के युवाओं को रोजगार के लिए शहर जाते हुए देखा है। अधिकांश युवा बहुत कम मेहनताने में शहरों में काम कर रहे हैं। जबकि हमारे पहाड़ में रोजगार के कई साधन हैं। उन्हीं में मशरूम उत्पादन भी एक है। हम घर में ही मशरूम उत्पादन कर दूसरों को रोजगार भी दे सकते हैं। हमारे छोटे-छोटे रोजगार से पलायन को रोक सकते हैं।