उत्तराखंड में भालू के हमलों की घटनाएं बढ़ी

राज्य में भालू के हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं। इसके पीछे भालू के हाइबरनेशन (शीत निद्रा) जाने की प्रक्रिया प्रभावित होना भी एक कारण माना जा रहा है पर सभी भालू की शीत निद्रा एक जैसी नहीं होती है। कोई भालू तीन तो कोई डेढ़ महीने तक भी शीत निद्रा में रहता है। यह तथ्य भारतीय वन्यजीव संस्थान के जम्मू- कश्मीर में भालू पर किए गए अध्ययन में सामने आया था।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक सत्यकुमार कहते हैं कि वर्ष-2011-2012 में दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान और आसपास के क्षेत्रों का अध्ययन किया गया। इसमें सात भालू में रेडियो कॉलर लगाया गया। इसके बाद उनके मूवमेंट को पता किया गया। इस अध्ययन में पता चला था कि भालू औसतन 65 दिन शीत निद्रा में रहे पर अलग- अलग तौर पर देखते हैं तो अध्ययन से पता चला कि एक भालू 90 दिन तक शीत निद्रा में रहा तो दूसरे भालू की शीत निद्रा 40 दिन ही रही। कश्मीर में सेब, चेरी के बाग काफी हैं, यहां भी भालू के हमले की घटनाएं सामने आती रही हैं।

राज्य में वन विभाग ने किया था अध्ययनन

वन विभाग ने भी भालू पर अध्ययन किया था। डीएफओ चकराता वैभव कुमार कहते हैं कि वह लैंसडोन वन प्रभाग के डीएफओ थे, उस वक्त यमकेश्वर ब्लॉक में भालू के हमलोंं की घटनाएं बढ़ी थी तो उसे लेकर वर्ष-2018 में अध्ययन किया गया था। इसमें देखा गया था कि भालू के हाइबरनेशन में जाने की प्रक्रिया प्रभावित हुई है। वह हाइबरनेशन में जाने की जगह साल भर एक्टिव रह रहा है। इसके पीछे कम बर्फबारी, फीडिंग बिहेवियर में बदलाव समेत अन्य कारण हो सकते हैं।

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