लगभग सात हजार फीट की ऊंचाई पर उगने वाले खर्सू वृक्ष की पत्तियों से रेशम तैयार होने लगा है। क्षेत्र के पांच परिवारों ने खर्सू की पत्तियों पर रेशम के कीट पाल कर टसर उत्पादन प्रारंभ कर दिया है। पहली बार हर परिवार ने 30-30 हजार रुपये का टसर तैयार कर इस क्षेत्र में ग्रामीणों की आजीविका का एक मार्ग प्रशस्त कर दिया है। भविष्य में सामान्य माना जाने वाला खर्सू सैकड़ों परिवारों के लिए रोजी-रोटी का बड़ा जरिया बन सकता है।

खर्सू हिमालय में सात हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर पाया जाने वाला चारा प्रजाति का वृक्ष है। बांज जैसा ही लंबा यह वृक्ष बांज के जंगलों के साथ होता है। खर्सू के पेड़ वन पंचायतों के जंगलों में बहुतायत होते हैं। शहतूत, बांज की तरह इसकी पत्तियों से टसर तैयार होता है। इस दिशा में रेशम विभाग ने पहल की, परंतु खर्सू के पेड़ों के काश्तकारों की नाप भूमि में नहीं होने से समस्या हुई। जिसके लिए वन पंचायतों से जंगल के बीच खर्सू की पत्तियों से टसर तैयार करने की अनुमति ली गई।

अनुमति मिलने पर इमला गांव के चार काश्तकार इसके लिए आगे आए। गांव के लाल सिंह इमलाल, पुरमल सिंह इमलाल, गणेश सिंह इमलाल और रू प सिंह फर्सवाण सहित निर्तोली का एक परिवार आगे आए। वन पंचायत के जंगल में खर्सू के पेड़ पर रेशम के कीट पहुंचा कर टसर उत्पादन किया।
इन परिवारों ने इसकी उचित देखरेख की और टसर का उत्पादन प्रारंभ कर दिया है। पहली बार ही प्रति परिवार ने तीस हजार रुपये की आय की है। टसर का एक गोला रेशम विभाग दो रु पये की दर से क्रय करता है। प्रति परिवार ने 15 हजार टसर तैयार किए हैं। इसी टसर से रेशम तैयार किया जाता है।
अन्य ग्रामीण भी आने लगे हैं आगे
टसर उत्पादन करने वाले लाल सिंह इमलाल के परिवार के सदस्य चंद्र सिंह इमलाल बताते हैं कि अब इसके लिए अन्य ग्रामीण भी आगे आने लगे हैं। लगभग सात हजार फीट की ऊंचाई से ऊपर पाए जाने वाले खर्सू के सभी पेड़ों से टसर उत्पादन किया जा सकता है। अभी तक तो केवल तीस से चालीस पेड़ों को ही उपयोग में लाया गया है। मुनस्यारी तहसील के अंतर्गत इस ऊंचाई पर खर्सू के पेड़ों की बहुतायत है।
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