दीवाली की रात उज्जैन में फोड़े गए पटाखों के कारण हवा काफी जहरीली हो गई थी। इसका प्रमुख कारण शहर में चलाए गए विभिन्न प्रकार के पटाखे थे। इस रात शहर में एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 327 पर पहुंच गया था, जबकि सामान्य दिनों में यह 60 के आसपास रहता है।
31 अक्टूबर को मध्य प्रदेश में दीवाली पर हुई भारी आतिशबाजी के बाद कई शहरों में प्रदूषण जानलेवा स्तर तक बढ़ गया। इसका प्रमुख कारण पटाखे बताए जा रहे हैं। दीवाली की रात और अगले दिन पटाखों के प्रदूषण के कारण सांस लेना भी मुश्किल हो गया था। देर रात तक फर्जी ग्रीन पटाखे, सुतली बम, लड़ी बम और अन्य प्रतिबंधित पटाखे फोड़े गए। नियमानुसार शहर में बिकने वाले पटाखों को पहले प्रशासन द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए जांचा जाना चाहिए था कि वे प्रदूषण फैलाने वाले तो नहीं हैं। लेकिन, ग्रीन पटाखों के नाम पर खुलेआम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे शहर में बिके, जिससे प्रदूषण तेजी से फैला।
दीपावली के बाद प्रदूषण का स्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन हालात अब भी बेहतर नहीं हैं। महाकाल मंदिर क्षेत्र के आसपास गुरुवार को एक्यूआई 179 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण का मध्यम स्तर कहलाता है। मप्र प्रदूषण बोर्ड के उज्जैन कार्यालय के वैज्ञानिक अमितदास संत का कहना है कि दीपावली के बाद प्रदूषण स्तर में सुधार हुआ है। एक्यूआई मापने की मशीन महाकाल मंदिर क्षेत्र में लगी है, इसलिए वहां प्रदूषण का स्तर अधिक दर्ज होता है। जबकि शहर के अन्य हिस्सों में एक्यूआई 100 के आसपास है, जो सामान्य दिनों में 60 से 100 के बीच रहता है।
जबलपुर की संस्था पहुंची एनजीटी
जबलपुर की संस्था नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे और रजत भार्गव ने उज्जैन, इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में बढ़ते एक्यूआई को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में याचिका दायर की है। उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण बोर्ड और इन शहरों के कलेक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। डॉ. नाजपांडे ने अपनी याचिका में कहा है कि एनजीटी ने 2023 में दायर याचिका के बाद भोपाल, इंदौर, जबलपुर, उज्जैन और ग्वालियर के कलेक्टरों को प्रदूषण पर निगरानी रखने के निर्देश दिए थे। आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2024 में दीवाली के दौरान प्रतिबंधित पटाखों के कारण प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया।
कलेक्टर लेंगे बैठक, निकाला जाएगा प्रदूषण कम करने का तरीका
प्रदूषण नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार इन दिनों नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम चला रही है, जिसकी निगरानी प्रदेश सरकार कर रही है। इस प्रोग्राम के तहत नगर निगम, प्रदूषण बोर्ड, आरटीओ, वन विभाग आदि के सहयोग से प्रदूषण कम करने के उपाय किए जाते हैं। हर जिले में कलेक्टर प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए कार्यों की समीक्षा करते हैं।