आतंक को शह देने वाले पाकिस्तान को भारत लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग कर रहा है. ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) में भी भारत ने पाकिस्तान को कूटनीतिक शिकस्त दी है. पाकिस्तान दुनिया को ये बताकर भले ही खुश हो रहा हो कि उसने जम्मू-कश्मीर पर OIC में अलग से प्रस्ताव पास करवा लिया है, लेकिन पाकिस्तान इस प्रस्ताव को अबु धाबी से जारी किए जाने वाले अंतिम संयुक्त विज्ञप्ति में शामिल नहीं करा सका है.
बता दें कि संयुक्त घोषणा पत्र OIC का एकमात्र आधिकारिक दस्तावेज है जिसे इस संगठन के सभी 57 देश स्वीकार करते हैं. इसी दस्तावेज को दुनिया के सामने चर्चा के लिए पेश किया जाता है.
पाकिस्तान द्वारा लगातार दबाव दिए जाने के बावजूद भी अबु धाबी झुका नहीं और कश्मीर को अंतिम ड्राफ्ट में शामिल नहीं किया गया. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान OIC के हर सेशन में भारत से जुड़े मुद्दों पर घेरने की कोशिश करता रहा है. OIC में पाकिस्तान ने पहली बार भारत का विरोध दूसरे सेशन में किया, जब राजा अली एजाज के नेतृत्व में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने भारत को न्यौता देने के लिए अपनी कड़ी आपत्ति जताई. राजा अली एजाज सऊदी अरब में पाकिस्तान के राजदूत हैं.
बता दें कि सुषमा स्वराज OIC की मीटिंग में बतौर गेस्ट ऑफ ऑनर शामिल हुई थीं. इसका विरोध करते हुए पाकिस्तान ने 1 मार्च को घोषणा की थी वो इस बैठक में शामिल नहीं होगा.
पहली जीत
पाकिस्तान ने ना सिर्फ विरोध किया बल्कि इससे पहले 27 फरवरी को जेद्दा में UAE और सऊदी अरब से बात कर जम्मू-कश्मीर पर OIC के कॉन्टैक्ट ग्रुप की आपात बैठक भी बुलाई. इस मीटिंग में पाकिस्तान के विदेश सचिव तहमीना जांजुआ और पाक अधिकृत कश्मीर के ‘राष्ट्रपति’ मसूद खान भी मौजूद थे. ये दोनों जम्मू-कश्मीर में कथित तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन के मामले और भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्यचार के मामले को उठा रहे थे और भारत को न्यौता भेजने का विरोध कर रहे थे. हालांकि OIC इस विरोध के सामने नहीं झुका. भारत के लिए ये पहली कूटनीतिक जीत थी.
बता दें कि अबु धाबी से जारी होने वाले OIC की संयुक्त विज्ञप्ति से कश्मीर को हटाने के लिए भारत ने जोरदार कूटनीतिक पैरवी की थी. इसी का नतीजा रहा कि इस घोषणापत्र से कश्मीर का नाम अलग रहा, यहां तक कि इस विज्ञप्ति में कश्मीर की चर्चा (Passing reference) भी नहीं हुई. OIC में भारत की ये दूसरी जीत थी.
OIC में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने कई देशों के विदेश मंत्रियों से बात की, खासकर सऊदी अरब के विदेश मंत्री से. इन तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर पर सिर्फ अलग से एक प्रस्ताव पास करा सका. हालांकि ऐसे प्रस्तावों का ज्यादा कूटनीतिक महत्व नहीं है. एक अधिकारी ने समझाया, “ये प्रस्ताव सदस्य देशों की एकजुटता को नहीं दिखाते हैं, मुख्य रूप से ये प्रस्ताव एक देश के किसी मुद्दे पर स्टैंड को दिखाते हैं, कई देश अपना खुद का प्रस्ताव पेश करते हैं, ऐसे ज्यादातर प्रस्तावों का विरोध नहीं होता है.”
बता दें कि OIC के संयुक्त घोषणापत्र के इतिहास में अबतक सिर्फ ताशकंद घोषणापत्र 2016 में ही ऐसा हुआ था कि जब अंतिम डॉक्युमेंट से कश्मीर शब्द का हटाया गया था.