पहाड़ों पर बसा यह प्रदेश न सिर्फ घूमने के लिए जाना जाता है बल्कि यह भोजन में भी आगे होता है, यहां का भोजन पौष्टिक के साथ स्वादिष्ट भी होता है। इसलिए लोग आज इसे एक नया रूप दे रहे हैं। कभी झंगोरे के मफिन बनाकर, तो कभी सिसूण का सूप बनाकर इनकी लोकप्रियता बढ़ा रहे हैं।
यह थे यहां ख़ास
यदि आप भी नए साल में कही जाने की सोच रहे है तो उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विभाग ने एक प्रमुख होटल के सहयोग से ‘विंटर कार्निवल, का एक प्रमुख आकर्षण उत्तराखंड के भोजन का महोत्सव था। इस महोत्सव में एक से अधिक ‘खोमचों’ पर पहाड़ी दालें थीं- कहीं ‘काले भट्ट’ की चुटकाणी तो, कहीं पथरी का रामबाण इलाज समझी जाने वाली ‘गहत’ यानी कुल्थी की दाल। इनके अलावा तूर यानी पहाड़ी अरहर और कभी गोरे ‘राजा’ विल्सन की राजधानी रहे हरसिल के मशहूर राजमा भी नजर आ रहे थे।
अखरोट का चॉकलेटी केक भी
इस मेले में स्थित दालों का भरपूर आनंद लेना हो, तो इनकी जुगलबंदी करें मोटे लाल या भूरे चावल के साथ ही लिया जा सकता है इस भोजन महोत्सव में कुल्थी की दाल को कंडाली सिसूण अर्थात् बिच्छू बूटी के पत्तों के साथ मिला कबाब भी पेश किए गए थे। इन्हीं के साथ कुल्थी की दाल से भरे मड़ुए के पराठे भी चखने को मिले और मड़ुए-अखरोट का चॉकलेटी केक भी।
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