ऐसी मान्यता है कि हिन्दू धर्म मे खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित है। लेकिन उत्तर प्रदेश के कौशांबी के कड़ा धाम स्थित महाकालेश्वर मठ में खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि खंडित शिवलिंग की पूजा करने वाले भक्तों की मनोकामना भी पूरी होती है।मठ के महंत और आसपास के लोगों की मानें तो गंगा किनारे स्थित इस शिवलिंग को महाभारत काल में पांडु पुत्र युधिष्ठिर ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। कालांतर में जब औरंगजेब ने भारत के मंदिरों पर आक्रमण किया था तो कालेश्वर मंदिर पर भी उसके सैनिकों ने धावा बोला था।
उस समय मठ में रहने वाले महंत उमराव गिरि जी महाराज उर्फ नागा बाबा ने रक्षार्थ भोलेनाथ की आराधना किया। लेकिन सैनिक पल-पल पास आते जा रहे थे,तब क्रोधित नागा बाबा ने शिवलिंग पर अपने फरसे से प्रहार कर दिया। इस पर शिवलिंग से असंख्य भौरे (मधुमक्खी) निकलकर औरंगजेब की सेना पर टूट पड़ी और उसे मार गिराया।
तबसे अब तक इस खंडित शिवलिंग की लगातार पूजा की जा रही है। शक्तिपीठ मां शीतला धाम के नजदीक गंगा तट पर स्थित महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना के बारे में ये किवदंती है।
कहा जाता है महाभारत काल में कड़ाधाम को करोकोटक वन के नाम से जाना जाता था इसी करोकोटक वन में पांडु पुत्रों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय व्यतीत किया था। अज्ञातवास के दौरान ही धर्मराज युधिष्ठर ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर परिवार सहित पूजन किया था।
कालांतर मे यहां मठ बना और उमराव गिरि जी महाराज उर्फ नागा बाबा जिन्हें आल्हा-उदल का गुरु भी कहा जाता है यहां के महंत बने। इस घटना के बाद से आज तक खंडित शिवलिंग अपनी जगह पर स्थापित है और बिना किसी संकोच धार्मिक धारणाओं को परे रख भक्तगण यहां पूजा पाठ करते हैं।
भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में पूजा करने वाले भक्तों पर भोलेनाथ बाबा का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है, उन पर कभी कोई संकट नहीं आता।