इस्लामिक बैंकिंग को मिला बेहद ठंडा रिस्पांस, नाममात्र के जमाकर्ता...

इस्लामिक बैंकिंग को मिला बेहद ठंडा रिस्पांस, नाममात्र के जमाकर्ता…

दारुल उलूम देवबंद एक तरफ फतवा जारी कर रहा है कि,मुसलमान बैंक कर्मचारियों से शादी से बचें, क्योंकि वहां सूद का काम होता है और ये काम इस्लाम के हिसाब से अनुचित है. दूसरी तरफ देश में इस्लामिक बैंकिंग के खातों में लोगों की दिलचस्पी ही नहीं पैदा हो रही है. देश में चल रही इस्लामिक बैंकिंग की सुविधा फिलहाल फ्लॉप नजर आ रही है.इस्लामिक बैंकिंग को मिला बेहद ठंडा रिस्पांस, नाममात्र के जमाकर्ता...

महाराष्ट्र के सोलापुर में लोकमंगल को-ऑपरेटिव बैंक में 2016 में इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत हुई, लेकिन शरीयत आधारित बैंक खाता खुलवाने वालों की संख्या दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई. दिलचस्प बात ये है कि इस अनोखी बैंकिंग सेवा को भारतीय जनता पार्टी के नेता और महाराष्ट्र के सहकारिता मंत्री सुभाष देशमुख ने शुरू किया जो कि लोकमंगल बैंक के अध्यक्ष भी हैं.

सुभाष देशमुख ने इंडिया टुडे को फोन पर बताया कि इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत सितंबर 2016 में लोकमंगल बैंक में इस वजह से की गई ताकि शरीयत के मुताबिक बैंकिंग चाहने वाले लोग अपना खाता खुलवा सकें और कर्ज ले सकें. बैंक ने खाते और लोन दोनों को ब्याजमुक्त रखा. इसके लिए बैंक ने शून्य ब्याज दर वाले खाते खोलना शुरू किए. 

देशमुख बताते हैं कि, “सवा साल में जिस तरह की प्रतिक्रिया इस्लामिक बैंकिंग को मिली है वह निराशाजनक है. लोगों में खाता खुलवाने का उत्साह नहीं है इसलिए कर्ज देने का अनुपात भी कम है.” इसकी वजह पूछने पर देशमुख कहते हैं कि, “जो भी इनसान बैंक में पैसा जमा कराता है वो बदले में ब्याज भी चाहता है.”

करीब दस लाख की आबादी वाले सोलापुर शहर की मुसलिम आबादी 20 फीसदी है. बैंक की सोलापुर शाखा के महाप्रबंधक दिनकर देशमुख बताते हैं, “ब्रांच में अभी तक करीब दस लाख रुपए इस्लामिक बैंकिंग के तहत जमा हुए हैं और इतनी ही रकम जरूरतमंदों को कर्ज के रूप में दी गई है. दोनों ही ब्याजमुक्त है.” मालूम हो कि यहां कर्ज देने वालों की सिफारिश खुद जमाकर्ता ही करते हैं. जितना जमा होगा उतना ही कर्ज दिया जाएगा.

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