इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का बीएसपी स्वागत करती है: मायावती

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने योगी सरकार को सार्वजनिक स्थलों पर लगाए गए कथित उपद्रवियों की फोटो हटाने का आदेश दिया है. इन सभी कथित उपद्रवियों पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान तोड़-फोड़ करने का आरोप है.

बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने हाई कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट कर कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी है.

उन्होंने लिखा, ‘लखनऊ में सीएए के विरोध में किये गये आन्दोलन मामले में हिंसा के आरोपियों के खिलाफ सड़कों-चैराहों पर लगे बड़े-बड़े सरकारी होर्डिंग-पोस्टरों को मा. इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर, उन्हें तत्काल हटाये जाने के आज दिये गये फैसले का बीएसपी स्वागत करती है.’

इससे पहले सोमवार को मुख्य न्यायधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने आदेश देते हुए कहा, “बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना अवैध है.

यह निजता के अधिकार का हनन है. बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है.” इसके साथ ही अदालत ने 16 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.

उपद्रव और तोड़फोड़ करने के आरोपियों के सार्वजनिक पोस्टर लगाए जाने के मामले में लखनऊ के डीएम और कमिश्नर को अविलंब पोस्टर, बैनर व फोटो आदि हटाने के आदेश दिए गए हैं.

इससे पहले रविवार को मुख्य न्यायाधीश माथुर और न्यायमूर्ति सिन्हा की विशेष पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की थी. इसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था.

ज्ञात हो कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लखनऊ में हुए प्रदर्शन के दौरान निजी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कई लोगों की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर लगा दी गई.

इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि ऐसा कौन-सा कानून है, जिससे सरकार को सार्वजनिक स्थानों पर फोटो चस्पा करने का अधिकार मिल जाता है.

महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने बताया, “सड़क के किनारे उन लोगों के पोस्टर व होर्डिग लगाए गए हैं, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है. इन लोगों ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है.

पूरी प्रक्रिया कानून के मुताबिक अपनाई गई है. उन्हें अदालत से नोटिस जारी किया गया था. अदालत में उपस्थित न होने पर पोस्टर लगाने पड़े.”

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