उत्तर प्रदेश में इंसेफ्लाइटिस से होने वाली मौतें एक साल में घट कर आधी और गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में महज सात फीसद रह गई हैं, तो यह सब केवल सरकारी अभियानों की बदौलत नहीं हुआ है। इसके पीछे वास्तव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पेशेंट ऑडिट का वह फार्मूला है, जो एक वर्ष में गेमचेंजर बन गया है। दो दशक से बीमारी और इलाज को नजदीक से देख रहे योगी ने इसे सख्ती से लागू किया तो वर्ष भर में नतीजे भी सामने आ गए।
आदित्यनाथ ने सीजन की शुरुआत में ही प्रभावित जिलों के अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि गांवों से सीधे कोई मरीज बीआरडी कॉलेज आया तो यही माना जाएगा कि वहां पीएचसी, सीएचसी या जिला अस्पताल में इलाज नहीं किया गया। मरीजों को बीआरडी कॉलेज रेफर करने वाले डॉक्टरों से भी पेशेंट ऑडिट के तहत मरीज भेजने का कारण पूछने शुरू कर दिए गए। हर मरीज के ऐसे ऑडिट ने नीचे तक पूरे तंत्र को सक्रिय कर दिया। यही वजह रही कि बीते वर्ष अगस्त में बीआरडी कॉलेज गोरखपुर पहुंचे 400 मरीजों की संख्या इस बार घटकर केवल 80 रह गई, जबकि अगस्त में मौतों की संख्या भी एक वर्ष में 86 से घटकर छह पर आ गई।
एक साल पहले तक पूर्वाचल के 38 जिलों और पड़ोसी राज्य बिहार से लेकर पड़ोसी देश नेपाल तक के लोगों को इंसेफ्लाइटिस के उपचार के लिए गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के सिवा कोई और ठिकाना नहीं दिखता था। बीआरडी कॉलेज में एक-एक बिस्तर पर चार-चार बच्चे भर्ती किए जाते थे, फिर भी सबको बेड नहीं मिल पाता था। ऐसे हालात की ही वजह से 2016 में बीआरडी कॉलेज में इंसेफ्लाइटिस के 4353 मामलों में जहां 715 मौतें हुई थीं, वहीं पिछले साल 2017 में भर्ती हुए 5400 मरीजों में मौत का आंकड़ा 748 तक पहुंच गया था।
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद इंसेफ्लाइटिस के उपचार के लिए उन्होंने जहां अन्य केंद्र तैयार कर वैकल्पिक ढांचा तैयार कराया, वहीं पेशेंट ऑडिट का फामरूला लागू कर मरीजों को सीधे बीआरडी कॉलेज गोरखपुर आने से रोक दिया गया। बीआरडी कॉलेज से बाहर तैयार किए गए केंद्रों ने भी जिम्मेदारी निभाई। यही वजह रही कि प्रदेश में इस वर्ष सभी मामलों को मिलाकर भी मरीजों और मौत के आंकड़े बीते वर्षो से खासे कम नजर आ रहे हैं।