राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू यादव के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं था इसलिए अब उनका आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर चुना जाना तय है. सिर्फ औपचारिक ऐलान बाकी है. जेल से लालू यादव अपनी पार्टी की कमान खुद रखेंगे. सरकारी तौर पर हर शनिवार को रांची के रिम्स अस्पताल में उनसे नेताओं की मुलाकात होती रहती है. फोन से उनका संपर्क परिवार और पार्टी के सभी नेताओं से होता है.

सवाल ये है कि आखिर लालू ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद अपने पास ही क्यों रखा? पार्टी के एक बड़े खेमे की मांग थी कि तेजस्वी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाए. पर लालू ने ये बात नहीं मानी. लालू ने सोच समझकर ये रणनीति अपनाई है. परिवार में पहले से ही बड़े बेटे तेजप्रताप, छोटे बेटे तेजस्वी और बड़ी बेटी मीसा भारती में अनबन और राजनीतिक दूरी होने की खबरें आती रहती हैं. दूसरी तरफ पार्टी में कोई ऐसा चेहरा नहीं जिसे हर नेता अपना नेता मान ले. ऐसे में परिवार और पार्टी पर पकड़ बनाए रखने के लिए ये किसी को कमान सौंपना खतरे से खाली नहीं था. दूसरी तरफ कानूनी लड़ाई लगातार लड़ रहे लालू को उम्मीद है कि उन्हें जमानत जरूर मिलेगी.
पार्टी में बिखराव हो सकता है. लालू ने पहले ही दो इंतजाम कर दिए हैं. तेजस्वी को भावी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना दिया और दूसरी तरफ अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया है. वहीं लालू ने अपने पुराने भरोसेमंद साथी जगदानन्द को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. जिससे पार्टी में अनुशासन आ सके. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वह जबतक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहेंगे उनके हाथ से ही उम्मीदवारों को टिकट का सिंबल मिलेगा. ऐसे में जेल के अंदर रहने के बाद भी उनके पास नेताओं का तांता लगा रहेगा.
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